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12:37, 10 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
मन लागत जाको जबै जिहिसों
करि दाया तो सोऊ निभावत है ।
यह रीति अनोखी तिहारी नई
अपुनो जहाँ दूनो दुखावत है ।
'हरिचंद जू' बानो न राखत आपुनो
दासहु हवै दुख पावत है ।
तुम्हरे जन होइ कै भोगैं दुखै तुम्हें
लाजहु हाय न आवत है ।