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13:02, 10 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
अब प्रीति करी तौ निबाह करौ
अपने जन सों मुख मोरिए ना ।
तुम तो सब जानत नेह मजा
अब प्रीति कहूँ फिर जोरिए ना ।
'हरिचंद' कहै कर जोर यही
यह आस लगी तेहि तोरिए ना ।
इन नैनन माहँ बसो नित ही
तेहि आँसुन सों अब बोरिए ना ।