भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"साहस-गाथा / संजय चतुर्वेदी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेदी |संग्रह=प्रकाशवर्ष / संजय चतुर्…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:01, 12 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
कांपता रहता है खड़ा-खड़ा काफी रात
बंधा हुआ पेड़ के सहारे
पेड़ की तरह असहाय
आते हैं वनराज अलसायी चाल से
टटोलते हैं उसका धड़कता हुआ दिल
रहम की तरह टूट पड़ते हैं उस पर
छोड़ आते हैं कुछ तसवीरें
कल के अखबारों में छपने के लिए
जंगल के पत्ते
सिर झुकाए देखते हैं सारा तमाशा
उदास सरसराहट पर फैलती है
साहस-गाथा प्रकृति-प्रेमियों की.
00