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"सुलफ़े का दम / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर

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कुंभ नगर के नागरिकों की बस्ती देखी
 
कुंभ नगर के नागरिकों की बस्ती देखी
 
भोर, दोपहर, संझा और रात की बेला
 
भोर, दोपहर, संझा और रात की बेला
सजे एक से एक अखाड़े मस्ती देखी
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सजे एक से एक अखाड़े मस्ती देखी
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"'सब के दाताराम'-अर्थ क्या है," यह चेला
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पूछ रहा था; बोले गुरू, देख आ मेला
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बैरागी रागी है और माल खाते हैं
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मूढ़, विधाता का है यह छोटा सा खेला
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देख कुली मज़दूर वस्तु ढो कर लाते हैं
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मज़दूरी के पैसे पर धक्के पाते हैं
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साधु-संत सोते हैं सुखी पाँव फैलाए
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कितने ही लखपती पास उन के आते हैं
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चरणधूलि लेते हैं, वहीं स्वर्ग से आए।
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बमभोले शंकर गाँजे का, सुलफ़े का दम
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लिया गुरू ने; लवर उठी, फिर बोले, बम बम ।
 
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19:26, 13 जुलाई 2010 का अवतरण

कुंभ नगर के नागरिकों की बस्ती देखी
भोर, दोपहर, संझा और रात की बेला
सजे एक से एक अखाड़े मस्ती देखी ।
"'सब के दाताराम'-अर्थ क्या है," यह चेला
पूछ रहा था; बोले गुरू, देख आ मेला
बैरागी रागी है और माल खाते हैं
मूढ़, विधाता का है यह छोटा सा खेला
देख कुली मज़दूर वस्तु ढो कर लाते हैं
मज़दूरी के पैसे पर धक्के पाते हैं
साधु-संत सोते हैं सुखी पाँव फैलाए
कितने ही लखपती पास उन के आते हैं
चरणधूलि लेते हैं, वहीं स्वर्ग से आए।

बमभोले शंकर गाँजे का, सुलफ़े का दम
लिया गुरू ने; लवर उठी, फिर बोले, बम बम ।