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तुलसीदास के दोहे / तुलसीदास

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लेखक: [[तुलसीदास]]{{KKGlobal}}[[Category:दोहे]]{{KKRachna|रचनाकार=तुलसीदास[[Category:कविताएँ]]}}[[Category:तुलसीदासदोहे]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~* <poem>
तुलसी अपने राम को, भजन करौ निरसंक
 
आदि अन्त निरबाहिवो जैसे नौ को अंक ।।
 
आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह!
 
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह!!
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर!
बसीकरण एक मंत्र है परिहरु बचन कठोर!!
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओरबिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय! आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे सब कोय!!
बसीकरण तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक!साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक मंत्र है परिहरु बचन कठोर !!
काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान!
तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान!!
बिना तेज के पुरूष अवशी अवज्ञा होय राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार!तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार!!
आगि बुझे ज्यों रख की आप छुवे नाम राम को अंक है , सब कोयसाधन है सून!अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून!!
प्रभु तरु पर, कपि डार पर ते, आपु समान!
तुलसी कहूँ न राम से, साहिब सील निदान!!
हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ!तुलसी साथी विपत्ति के विद्या विनय विवेकस्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ!!
साहस सुकृति सुसत्याव्रत राम भरोसे एक तुलसी हरि अपमान तें होई अकाज समाज!राज करत रज मिली गए सकल सकुल कुरुराज!!
राम दूरि माया बढ़ती , घटती जानि मन मांह !
भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह !!
काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि!राग न रोष न दोष दुःख सुलभ पदारथ चारी!!
तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान चित्रकूट के घाट पर भई संतान की भीर !तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुबीर!!
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए!
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए!!
राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वारनीच निचाई नही तजई, सज्जनहू के संग!तुलसी चंदन बिटप बसि, बिनु बिष भय न भुजंग !!
तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियारब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहीं न दूसरी बात!कौड़ी लागी लोभ बस करहिं बिप्र गुर बात !!
फोरहीं सिल लोढा, सदन लागें अदुक पहार !
कायर, क्रूर , कपूत, कलि घर घर सहस अहार !!
नाम राम को अंक है , सब साधन है सूनतुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन!अब तो दादुर बोलिहं हमें पूछिह कौन!!
अंक गए कछु हाथ नहीमनि मानेक महेंगे किए सहेंगे तृण, अंक रहे दस गूनजल, नाज!तुलसी एते जानिए राम गरीब नेवाज!!
होई भले के अनभलो,होई दानी के सूम!
होई कपूत सपूत के ज्यों पावक मैं धूम!!
प्रभु तरु पर, कपि डार पर ते, आपु समानजड़ चेतन गुन दोषमय विश्व कीन्ह करतार!संत हंस गुन गहहीं पथ परिहरी बारी निकारी!!
तुलसी कहूँ न राम सेइस संसार में. भांति भांति के लोग। सबसे हस मिल बोलिए, साहिब सील निदान!!नदी नाव संजोग॥
 हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ! तुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ!!  तुलसी हरि अपमान तें होई अकाज समाज! राज करत रज मिली गए सकल सकुल कुरुराज!!  राम दूरि माया बढ़ती , घटती जानि मन मांह ! भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह !!</poem>