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Kavita Kosh से
अगर देश से शुरू होती है
यह कहानी
तो वह इसका एक नितांत उपेक्षित पात्र है
नहीं, नहीं कुपात्र है , ऐसा कुपात्र हैजो सच बोलकर
गर्वीले झूठ के सामने
अपराध-बोध से
धंसता चाला चला जाता है--
तलहीन रसातल में
आओ!
मैं परिवार और समाज में अनफिट
उसके सहोदारों की चर्चा छेड़ता हूं ,
जिनके पले-पुसे सपने
रेत की तरह भुरभुरे होते जाते हैं
निचाट रात होने तक
अपने वहशी पति की
बाट जोहती है,
बेशक! वह उनमें से एक है
जिसे दुष्ट देव ने
उसे हताशा की हुक पर
हलाल बकरे की तरह लटका दिया है.