"लंबी कविता की पाण्डुलिपि / सुनील गंगोपाध्याय" के अवतरणों में अंतर
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अरण्य के साथ एक समान्तराल अरण्य | अरण्य के साथ एक समान्तराल अरण्य | ||
दोपहर की निर्जनता में दूसरी एक निर्जनता | दोपहर की निर्जनता में दूसरी एक निर्जनता | ||
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प्यार के मुखमण्डल को घेरे हुए है एक दूसरा प्यार | प्यार के मुखमण्डल को घेरे हुए है एक दूसरा प्यार | ||
गहरी सांस के पड़ोस में एक और गहरी सांस | गहरी सांस के पड़ोस में एक और गहरी सांस |
19:53, 16 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
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इस पृथ्वी के साथ मिली हुई है एक दूसरी पृथ्वी
अरण्य के साथ एक समान्तराल अरण्य
दोपहर की निर्जनता में दूसरी एक निर्जनता
मुझे विस्मित कर देता है
कभी-कभी बहुत विस्मित कर देता है,
प्यार के मुखमण्डल को घेरे हुए है एक दूसरा प्यार
गहरी सांस के पड़ोस में एक और गहरी सांस
किसी शाम नदी किनारे अकेला बैठता हूं
लहर-लहर टुकड़े-टुकड़े हो जाता है रक्तवर्ण-आकाश
तब एक और नदी के पड़ोस में
असंख्य लहरों का सम्राट बनकर
अकेले एक इन्सान का बैठे रहना --
एक अकेला इन्सान
पानी के इन्द्रजाल में देखता है कि वह अकेला नहीं
समस्त दुखों के हिमशीतल बिस्तर में है
एक और दूसरा दु:ख
सारे चिकने रास्तों के सिरहाने डोलता है
बिसरा दिया गया और एक निरुÌेश्य रास्ता
मुझे वििस्मत कर देता है
कभी-कभी बहुत वििस्मत कर देता है ....
मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी