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"ऊबे हुए विषधर/ चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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हर सुबह शिवलिंग पर जो दूध चढ़ाते हो | हर सुबह शिवलिंग पर जो दूध चढ़ाते हो | ||
उसे बड़े-बड़े स्याह लाल फूलों से | उसे बड़े-बड़े स्याह लाल फूलों से | ||
− | भरी क्यारियों | + | भरी क्यारियों में दुबके साँप |
पी जाते हैं | पी जाते हैं | ||
दूध से ऊबे वे विषधर | दूध से ऊबे वे विषधर | ||
− | तुम्हारे घर आने जाने | + | तुम्हारे घर आने-जाने वालों को |
− | काट लिया करते हैं कभार | + | काट लिया करते हैं / कभी-कभार |
इसी से आने से पूर्व | इसी से आने से पूर्व | ||
मैं पूछ लिया करती हूँ | मैं पूछ लिया करती हूँ | ||
कि इधर हाल ही में | कि इधर हाल ही में | ||
कोई मरा है क्या | कोई मरा है क्या | ||
− | + | ||
इसमें मेरी इच्छा इतना | इसमें मेरी इच्छा इतना | ||
तुम्हें ज़ाहिर करने की नहीं होती | तुम्हें ज़ाहिर करने की नहीं होती | ||
जितना जान का मोह | जितना जान का मोह | ||
मुझे उकसाता है | मुझे उकसाता है | ||
− | + | ||
− | जिसे जब | + | जिसे जब / तब तिलांजली दे कर |
मैं तुम तक आया करती हूँ | मैं तुम तक आया करती हूँ | ||
− | + | क्योंकि तुम्हारे हाथों खिंची लकीरें | |
भाग्य-रेखाएँ हो जाती हैं | भाग्य-रेखाएँ हो जाती हैं | ||
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21:19, 16 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
हर सुबह शिवलिंग पर जो दूध चढ़ाते हो
उसे बड़े-बड़े स्याह लाल फूलों से
भरी क्यारियों में दुबके साँप
पी जाते हैं
दूध से ऊबे वे विषधर
तुम्हारे घर आने-जाने वालों को
काट लिया करते हैं / कभी-कभार
इसी से आने से पूर्व
मैं पूछ लिया करती हूँ
कि इधर हाल ही में
कोई मरा है क्या
इसमें मेरी इच्छा इतना
तुम्हें ज़ाहिर करने की नहीं होती
जितना जान का मोह
मुझे उकसाता है
जिसे जब / तब तिलांजली दे कर
मैं तुम तक आया करती हूँ
क्योंकि तुम्हारे हाथों खिंची लकीरें
भाग्य-रेखाएँ हो जाती हैं