भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दूसरा / चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…) |
|||
पंक्ति 10: | पंक्ति 10: | ||
गाती फिरती चिड़िया | गाती फिरती चिड़िया | ||
पत्तों की छाँव में घोंसला | पत्तों की छाँव में घोंसला | ||
− | + | घोंसले | |
+ | में चहक नन्ही-सी | ||
देखती आँखें भर जाती | देखती आँखें भर जाती | ||
स्वप्नों से | स्वप्नों से | ||
पंक्ति 31: | पंक्ति 32: | ||
पर केवल देखती ही नहीं | पर केवल देखती ही नहीं | ||
वह तो झेलती है | वह तो झेलती है | ||
− | पल-पल दूसरा | + | पल-पल दूसरा. |
21:28, 16 जुलाई 2010 का अवतरण
दरख़्त की शाख़-शाख़ पर
गाती फिरती चिड़िया
पत्तों की छाँव में घोंसला
घोंसले
में चहक नन्ही-सी
देखती आँखें भर जाती
स्वप्नों से
लहक उठतीं आस में
मुँद जातीं लाज से
. . . .
अंधड़ पानी
ढह जाता दरख़्त
टूटता घोंसला
चीख़ होती चटक
बदहवास उड़ती चिड़िया
देखती आँखें
डूब जातीं आँसुओं में
लौटती / बटोरती
तिनका-तिनका हुआ घोंसला
. . . .
औरत चाहती है
देखे
एक ही दृश्य
पर केवल देखती ही नहीं
वह तो झेलती है
पल-पल दूसरा.