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"जी ही लेती है/ चंद्र रेखा ढडवाल" के अवतरणों में अंतर
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− | + | पानी पर बनी लकीरें मिटाती | |
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08:07, 17 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
सुबह को
कुछ और सुबह करते
रात को
कुछ और गहराते
मर्द जीता है
सब कुछ के बीच में से
गुज़रते हुए इत्मिनान से
***
उजाले / अँधेरे से
लुका-छिपी करती
सब कुछ को बस
छू कर निकल जाती
पानी पर बनी लकीरें मिटाती
औरत भी
जी ही लेती है.