भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तन्हाई और सन्नाटे में / मुकेश मानस" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> कौंन आता है यहाँ क…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
10:28, 18 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
कौंन आता है यहाँ
कोई नहीं आता है
शाम की प्रतीक्षा में
दिन बीत जाता है
थकी हुई आती है शाम
बेचैंनी बढ़ जाती है
और किसी ख़ंज़र सी
दिल को चीर जाती है
रात भर मैं जागता हूँ
रात भर मैं सोचता हूँ
अपने सवालों के जवाब
रात भर मैं ढूँढता हूँ
दूर-दूर तक तन्हाई है
दूर-दूर तक सन्नाटा
मैं हूँ तन्हा और अकेला
और अन्धेरा गहराता
सूखा रेगिस्तान हूँ जैसे
या हूँ धरती बंजर
या बहते पानी में जैसे
कोई ठहरा पत्थर
बाहर-भीतर रीता हूँ
चुप-चुप आँसू पीता हूँ
कोई नहीं है जिसे कहूँ मैं
मरता हूँ ना जीता हूँ
1995