भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"परिन्दे / रमेश कौशिक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश कौशिक |संग्रह=कहाँ हैं वे शब्द / रमेश कौशिक }…)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:18, 18 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

ऊँचे-ऊँचे
उड़ते रहना नीलगगन में
देख परिन्दे!
जब तक ऊँचाई पर होगे
पूर्ण सुरक्षित बने रहोगे
सब आकाश तुम्हारा होगा
जो चाहोगे सो गाओगे
जब भी धरती पर आओगे
तुम्हे मिलेंगे सौ-सौ फन्दे |

कौन जानता किस फन्दे में
फँस जाएँगे पंख तुम्हारे
कनक कणों के चुग लेने पर
मर जाएँगे गीत बिचारे
कदम-कदम पर जाल बिछाए
बैठे हैं खूँख्वार दरिंदे|