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"जल ही जीवन है / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
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− | जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है | + | जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है |
− | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। | + | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। |
− | शीत स्पर्शी शुचि सुख सर्वस | + | शीत स्पर्शी शुचि सुख सर्वस |
− | गन्ध रहित युत शब्द रूप रस | + | गन्ध रहित युत शब्द रूप रस |
− | निराकार जल ठोस गैस द्रव | + | निराकार जल ठोस गैस द्रव |
− | त्रिगुणात्मक है सत्व रज तमस | + | त्रिगुणात्मक है सत्व रज तमस |
− | सुखद स्पर्श सुस्वाद मधुर ध्वनि दिव्य सुदर्शन है। | + | सुखद स्पर्श सुस्वाद मधुर ध्वनि दिव्य सुदर्शन है। |
− | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। | + | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। |
− | भूतल में जल सागर गहरा | + | भूतल में जल सागर गहरा |
− | पर्वत पर हिम बनकर ठहरा | + | पर्वत पर हिम बनकर ठहरा |
− | बन कर मेघ वायु मण्डल में | + | बन कर मेघ वायु मण्डल में |
− | घूम घूम कर देता पहरा | + | घूम घूम कर देता पहरा |
− | पानी बिन सब सून जगत में ,यह अनुपम धन है। | + | पानी बिन सब सून जगत में ,यह अनुपम धन है। |
− | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। | + | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। |
− | नदी नहर नल झील सरोवर | + | नदी नहर नल झील सरोवर |
− | वापी कूप कुण्ड नद निर्झर | + | वापी कूप कुण्ड नद निर्झर |
− | सर्वोत्तम सौन्दर्य प्रकृति का | + | सर्वोत्तम सौन्दर्य प्रकृति का |
− | कल॰॰कल ध्वनि संगीत मनोहर | + | कल॰॰कल ध्वनि संगीत मनोहर |
− | जल से अन्न पत्र फल पुष्पित सुन्दर उपवन है। | + | जल से अन्न पत्र फल पुष्पित सुन्दर उपवन है। |
− | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। | + | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। |
− | बादल अमृत सा जल लाता | + | बादल अमृत सा जल लाता |
− | अपने घर आँगन बरसाता | + | अपने घर आँगन बरसाता |
− | करते नहीं संग्रहण उसका | + | करते नहीं संग्रहण उसका |
− | तब बह॰बहकर प्रलय मचाता | + | तब बह॰बहकर प्रलय मचाता |
− | त्राहि त्राहि करता फिरता ,कितना मूरख मन है। | + | त्राहि त्राहि करता फिरता ,कितना मूरख मन है। |
− | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। | + | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। |
22:41, 18 जुलाई 2010 का अवतरण
जल ही जीवन है जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। शीत स्पर्शी शुचि सुख सर्वस गन्ध रहित युत शब्द रूप रस निराकार जल ठोस गैस द्रव त्रिगुणात्मक है सत्व रज तमस सुखद स्पर्श सुस्वाद मधुर ध्वनि दिव्य सुदर्शन है। जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। भूतल में जल सागर गहरा पर्वत पर हिम बनकर ठहरा बन कर मेघ वायु मण्डल में घूम घूम कर देता पहरा पानी बिन सब सून जगत में ,यह अनुपम धन है। जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। नदी नहर नल झील सरोवर वापी कूप कुण्ड नद निर्झर सर्वोत्तम सौन्दर्य प्रकृति का कल॰॰कल ध्वनि संगीत मनोहर जल से अन्न पत्र फल पुष्पित सुन्दर उपवन है। जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। बादल अमृत सा जल लाता अपने घर आँगन बरसाता करते नहीं संग्रहण उसका तब बह॰बहकर प्रलय मचाता त्राहि त्राहि करता फिरता ,कितना मूरख मन है। जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।