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"नंगी लड़की / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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कि कपड़ों का कैदखाना उसे
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अब बरदाश्त नहीं है
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नंगी होने की
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वह बेहद खौफज़दा है कि
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उससे अधिक नंगी
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लड़कियों के प्रति
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आकर्षणोंन्माद में
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भीड़ उसे
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नज़रअंदाज़ न कर दे
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इसलिए नंगी होने की यह प्रतियोगिता
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चलती रहेगी तब तक
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फैशन-पिपासुओं के लिए
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नंगेपन का
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पर्याय न बन जाए
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वस्त्र के शिष्ट वर्चस्व के खिलाफ
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एक अंतहीन जंग है
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जिसे चालू रखने में
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कम्प्यूटरीकृत सभ्यता की
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गहरी चाल है
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ताकि फैशन समाज में
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भरपूर उड़ेला जा सके
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यौनोन्माद
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चूंकि अजन्ताई कामुक देवियां
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नंगेपन के पक्ष में
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बहुतेरी दलीलें पेश करती हैं,
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इसलिए नग्नता
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प्रगतिशील तर्कजीवियों का
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एक बौद्धिक आदर्श है
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और दिल्ली तथा स्वर्ग में
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बहुत कम फर्क कर पाने वाले
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गंवई मेहमानों के लिए
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महानगर की उदार-बदन लड़कियां
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जो किसी भी अज़नबी के संग
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पार्क की ओट में चली जाती हैं
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कामरत सांप-सांपिन जैसी
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सरसराती हैं,
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आवारा पत्थरों पर बैठ
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ब्वायफ्रेंडों  से बतियाती हैं--
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फटी टंकी से टप-टप टपकती
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बूंदों की तरह
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और चमचमाती कारों में
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छू-मंतर हो जाती हैं
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--बेशक! वे स्वर्ग की अप्सराओं में
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शरीक होंगी,
 +
पंचतारा होटलों में
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गन्धर्वों के संग
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सबसे उम्दा पल गुजारेंगी,
 +
--ऐसा विश्वास है
 +
  अटूट विश्वास है
 +
  महानगर के तथाकथित
 +
  लिच्चड़ मेहमानों का.

12:57, 19 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


नंगी लड़की

बीच चौराहे पर लड़की
इसलिए खुश हो रही थी
कि वह सरे-बाजार
नंगी हो रही थी

इक्कीसवीं सदी के
स्त्रैण पाठकों के लिए
वह अपने जिस्म की
दिलचस्प किताब से
सारे जिल्द उतार,
पन्ने-पन्ने सहर्ष उघार,
यह जताकर इतरा रही थी
कि कपड़ों का कैदखाना उसे
अब बरदाश्त नहीं है

नंगी होने की
इस खुली प्रतियोगिता में
वह बेहद खौफज़दा है कि
उससे अधिक नंगी
लड़कियों के प्रति
आकर्षणोंन्माद में
भीड़ उसे
नज़रअंदाज़ न कर दे

इसलिए नंगी होने की यह प्रतियोगिता
चलती रहेगी तब तक
पहनावे की संकल्पना जब तक
फैशन-पिपासुओं के लिए
नंगेपन का
पर्याय न बन जाए

लिहाजा
नंगेपन का जांबाज़ आन्दोलन
वस्त्र के शिष्ट वर्चस्व के खिलाफ
छेड़ा हुआ
एक अंतहीन जंग है
जिसे चालू रखने में
कम्प्यूटरीकृत सभ्यता की
गहरी चाल है
ताकि फैशन समाज में
भरपूर उड़ेला जा सके
यौनोन्माद

चूंकि अजन्ताई कामुक देवियां
नंगेपन के पक्ष में
बहुतेरी दलीलें पेश करती हैं,
इसलिए नग्नता
प्रगतिशील तर्कजीवियों का
एक बौद्धिक आदर्श है
और दिल्ली तथा स्वर्ग में
बहुत कम फर्क कर पाने वाले
गंवई मेहमानों के लिए
महानगर की उदार-बदन लड़कियां
जो किसी भी अज़नबी के संग
पार्क की ओट में चली जाती हैं
कामरत सांप-सांपिन जैसी
सरसराती हैं,
आवारा पत्थरों पर बैठ
ब्वायफ्रेंडों से बतियाती हैं--
फटी टंकी से टप-टप टपकती
बूंदों की तरह
और चमचमाती कारों में
छू-मंतर हो जाती हैं
--बेशक! वे स्वर्ग की अप्सराओं में
शरीक होंगी,
पंचतारा होटलों में
गन्धर्वों के संग
सबसे उम्दा पल गुजारेंगी,
--ऐसा विश्वास है
  अटूट विश्वास है
  महानगर के तथाकथित
  लिच्चड़ मेहमानों का.