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"शहर के बच्चे जो रोते नहीं हैं / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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इस खुले सच की पड़ताल करने
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कि किसी अभिशाप के चलते
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उनकी आंखों का पानी
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रंग-बिरंगे नगों में तब्दील हो गया है

17:21, 19 जुलाई 2010 का अवतरण


शहर के बच्चे जो रोते नहीं हैं

और क्या हो सकता है
इससे बड़ा अपशकुन
आगंतुक संस्कृति के लिए
कि शहर के बच्चे रोने से
बाज आ चुके हैं,
ज़रुरत नहीं है
इस खुले सच की पड़ताल करने
शोध-अनुसंधान करने की
कि किसी अभिशाप के चलते
उनकी आंखों का पानी
रंग-बिरंगे नगों में तब्दील हो गया है