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"कविता बन रही उपहास / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

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जाग हे कवि प्रेम की जग में जगा दे प्यास
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जाग हे कवि प्रेम की जग में जगा दे प्यास
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कविता बन रही उपहास
  
दूर रवि से भी कभी जाता रहा कवि
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दूर रवि से भी कभी जाता रहा कवि
युद्ध में भी शांति पद गाता रहा कवि
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युद्ध में भी शांति पद गाता रहा कवि
आज दिल्ली तक पहुँचने की लगाए आस
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आज दिल्ली तक पहुँचने की लगाए आस
कविता बन रही उपहास
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कविता बन रही उपहास
  
नीति भ्रष्ट अशिष्ट छबि मुखपृष्ठ पर है
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नीति भ्रष्ट अशिष्ट छबि मुखपृष्ठ पर है
व्यक्ति निष्ठा की प्रतिष्ठा कष्टकर है
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व्यक्ति निष्ठा की प्रतिष्ठा कष्टकर है
सत्यनिष्ठ विशिष्ट को डाले न कोई घास
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सत्यनिष्ठ विशिष्ट को डाले न कोई घास
कविता बन रही उपहास
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कविता बन रही उपहास
 
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मुक्त छंद निबंध काव्य प्रबंध सारे
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हट गए प्रतिबंध के अनुबंध सारे
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हो रही निर्वस्त्र कविता हो रहा परिहास
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कविता बन रही उपहास
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मुक्त छंद निबंध काव्य प्रबंध सारे
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हट गए प्रतिबंध के अनुबंध सारे
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हो रही निर्वस्त्र कविता हो रहा परिहास
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कविता बन रही उपहास
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  पठन पाठन श्रवण चिंतन मनन होगा
 
  पठन पाठन श्रवण चिंतन मनन होगा
 
  प्रसव पीड़ा जनित उत्तम सृजन होगा
 
  प्रसव पीड़ा जनित उत्तम सृजन होगा
 
  करें सार्थक पारमार्थिक सतत अथक प्रयास
 
  करें सार्थक पारमार्थिक सतत अथक प्रयास
 
  कविता बन रही उपहास
 
  कविता बन रही उपहास

23:51, 19 जुलाई 2010 का अवतरण

 
जाग हे कवि प्रेम की जग में जगा दे प्यास
कविता बन रही उपहास

दूर रवि से भी कभी जाता रहा कवि
युद्ध में भी शांति पद गाता रहा कवि
आज दिल्ली तक पहुँचने की लगाए आस
कविता बन रही उपहास

नीति भ्रष्ट अशिष्ट छबि मुखपृष्ठ पर है
व्यक्ति निष्ठा की प्रतिष्ठा कष्टकर है
सत्यनिष्ठ विशिष्ट को डाले न कोई घास
कविता बन रही उपहास

मुक्त छंद निबंध काव्य प्रबंध सारे
हट गए प्रतिबंध के अनुबंध सारे
हो रही निर्वस्त्र कविता हो रहा परिहास
कविता बन रही उपहास

पठन पाठन श्रवण चिंतन मनन होगा
प्रसव पीड़ा जनित उत्तम सृजन होगा
करें सार्थक पारमार्थिक सतत अथक प्रयास
कविता बन रही उपहास