भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कविता बन रही उपहास / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 22: | पंक्ति 22: | ||
हट गए प्रतिबंध के अनुबंध सारे | हट गए प्रतिबंध के अनुबंध सारे | ||
हो रही निर्वस्त्र कविता हो रहा परिहास | हो रही निर्वस्त्र कविता हो रहा परिहास | ||
+ | कविता बन रही उपहास | ||
+ | |||
+ | पठन पाठन श्रवण चिंतन मनन होगा | ||
+ | प्रसव पीड़ा जनित उत्तम सृजन होगा | ||
+ | करें सार्थक पारमार्थिक सतत अथक प्रयास | ||
कविता बन रही उपहास | कविता बन रही उपहास | ||
</poem> | </poem> | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− |
23:51, 19 जुलाई 2010 का अवतरण
जाग हे कवि प्रेम की जग में जगा दे प्यास
कविता बन रही उपहास
दूर रवि से भी कभी जाता रहा कवि
युद्ध में भी शांति पद गाता रहा कवि
आज दिल्ली तक पहुँचने की लगाए आस
कविता बन रही उपहास
नीति भ्रष्ट अशिष्ट छबि मुखपृष्ठ पर है
व्यक्ति निष्ठा की प्रतिष्ठा कष्टकर है
सत्यनिष्ठ विशिष्ट को डाले न कोई घास
कविता बन रही उपहास
मुक्त छंद निबंध काव्य प्रबंध सारे
हट गए प्रतिबंध के अनुबंध सारे
हो रही निर्वस्त्र कविता हो रहा परिहास
कविता बन रही उपहास
पठन पाठन श्रवण चिंतन मनन होगा
प्रसव पीड़ा जनित उत्तम सृजन होगा
करें सार्थक पारमार्थिक सतत अथक प्रयास
कविता बन रही उपहास