"जल ही जीवन है / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | + | {{KKGlobal}} | |
− | + | {{KKRachna | |
− | + | |रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे | |
− | + | |संग्रह= | |
− | + | }} | |
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <Poem> | |
− | + | जल ही जीवन है | |
− | + | जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है | |
− | + | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।। | |
− | + | ||
− | + | शीत स्पर्शी शुचि सुख सर्वस | |
− | + | गन्ध रहित युत शब्द रूप रस | |
− | + | निराकार जल ठोस गैस द्रव | |
− | + | त्रिगुणात्मक है सत्व रज तमस | |
− | + | सुखद स्पर्श सुस्वाद मधुर ध्वनि दिव्य सुदर्शन है । | |
− | + | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।। | |
− | + | ||
− | + | भूतल में जल सागर गहरा | |
− | + | पर्वत पर हिम बनकर ठहरा | |
− | + | बन कर मेघ वायु मण्डल में | |
− | + | घूम घूम कर देता पहरा | |
− | + | पानी बिन सब सून जगत में ,यह अनुपम धन है । | |
− | + | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।। | |
− | + | ||
− | + | नदी नहर नल झील सरोवर | |
− | + | वापी कूप कुण्ड नद निर्झर | |
+ | सर्वोत्तम सौन्दर्य प्रकृति का | ||
+ | कल-कल ध्वनि संगीत मनोहर | ||
+ | जल से अन्न पत्र फल पुष्पित सुन्दर उपवन है । | ||
+ | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।। | ||
+ | |||
+ | बादल अमृत-सा जल लाता | ||
+ | अपने घर आँगन बरसाता | ||
+ | करते नहीं संग्रहण उसका | ||
+ | तब बह॰बहकर प्रलय मचाता | ||
+ | त्राहि-त्राहि करता फिरता, कितना मूरख मन है । | ||
+ | जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।। | ||
+ | </poem> |
23:56, 19 जुलाई 2010 का अवतरण
जल ही जीवन है
जल से हुआ सृष्टि का उद्भव जल ही प्रलय घन है
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है।।
शीत स्पर्शी शुचि सुख सर्वस
गन्ध रहित युत शब्द रूप रस
निराकार जल ठोस गैस द्रव
त्रिगुणात्मक है सत्व रज तमस
सुखद स्पर्श सुस्वाद मधुर ध्वनि दिव्य सुदर्शन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।
भूतल में जल सागर गहरा
पर्वत पर हिम बनकर ठहरा
बन कर मेघ वायु मण्डल में
घूम घूम कर देता पहरा
पानी बिन सब सून जगत में ,यह अनुपम धन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।
नदी नहर नल झील सरोवर
वापी कूप कुण्ड नद निर्झर
सर्वोत्तम सौन्दर्य प्रकृति का
कल-कल ध्वनि संगीत मनोहर
जल से अन्न पत्र फल पुष्पित सुन्दर उपवन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।
बादल अमृत-सा जल लाता
अपने घर आँगन बरसाता
करते नहीं संग्रहण उसका
तब बह॰बहकर प्रलय मचाता
त्राहि-त्राहि करता फिरता, कितना मूरख मन है ।
जल पीकर जीते सब प्राणी जल ही जीवन है ।।