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"देख प्रकृति की ओर / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

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देख प्रकृति की ओर
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क्यों दिखती कुम्हलाई संध्या
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|रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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क्यों विनाश आमंत्रित करता है मानव अभिमानी
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देख प्रकृति की ओर
अंतरिक्ष व्याकुल-सा दिखता
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मन रे! देख प्रकृति की ओर ।
बढ़ा अनर्गल शोर
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क्यों दिखती कुम्हलाई संध्या
देख प्रकृति की ओर।
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क्यों उदास है भोर
कहाँ गए आरण्यक लिखने वाले
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देख प्रकृति की ओर ।
मुनि संन्यासी
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जंगल में मंगल करते
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वायु प्रदूषित नभ मंडल
वे वन्यपशु वनवासी
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क्यों विनाश आमंत्रित करता है मानव अभिमानी
वन में डाकू चोर
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अंतरिक्ष व्याकुल-सा दिखता
देख प्रकृति की ओर।
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बढ़ा अनर्गल शोर
निर्मल जल में औद्योगिक मल
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देख प्रकृति की ओर ।
बिल्कुल नहीं बहायें
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हम सब अपने जन्मदिवस पर
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कहाँ गए आरण्यक लिखने वाले
एक-एक पेड़ लगाएं
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मुनि संन्यासी
पर्यावरण सुरक्षित करने
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जंगल में मंगल करते
पालें नियम कठोर
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वे वन्यपशु वनवासी
देख प्रकृति की ओर
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वन्यपशु नगरों में भटके
जैसे स्वस्थ त्वचा से आवृत
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वन में डाकू चोर
रहे शरीर सुरक्षित
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देख प्रकृति की ओर ।
वैसे पर्यावरण सृष्टि में
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सब प्राणी संरक्षित  
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निर्मल जल में औद्योगिक मल
क्षिति जल पावक गगन वायु में
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बिल्कुल नहीं बहायें
रहे शांति चहुँ ओर
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हम सब अपने जन्मदिवस पर
देख प्रकृति की ओर।
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एक-एक पेड़ लगाएँ
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पर्यावरण सुरक्षित करने
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पालें नियम कठोर
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देख प्रकृति की ओर
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जैसे स्वस्थ त्वचा से आवृत
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रहे शरीर सुरक्षित
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वैसे पर्यावरण सृष्टि में
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सब प्राणी संरक्षित  
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क्षिति जल पावक गगन वायु में
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रहे शांति चहुँ ओर
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देख प्रकृति की ओर ।
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23:59, 19 जुलाई 2010 का अवतरण

 
देख प्रकृति की ओर
मन रे! देख प्रकृति की ओर ।
क्यों दिखती कुम्हलाई संध्या
क्यों उदास है भोर
देख प्रकृति की ओर ।

वायु प्रदूषित नभ मंडल
दूषित नदियों का पानी
क्यों विनाश आमंत्रित करता है मानव अभिमानी
अंतरिक्ष व्याकुल-सा दिखता
बढ़ा अनर्गल शोर
देख प्रकृति की ओर ।

कहाँ गए आरण्यक लिखने वाले
मुनि संन्यासी
जंगल में मंगल करते
वे वन्यपशु वनवासी
वन्यपशु नगरों में भटके
वन में डाकू चोर
देख प्रकृति की ओर ।

निर्मल जल में औद्योगिक मल
बिल्कुल नहीं बहायें
हम सब अपने जन्मदिवस पर
एक-एक पेड़ लगाएँ
पर्यावरण सुरक्षित करने
पालें नियम कठोर
देख प्रकृति की ओर ।

जैसे स्वस्थ त्वचा से आवृत
रहे शरीर सुरक्षित
वैसे पर्यावरण सृष्टि में
सब प्राणी संरक्षित
क्षिति जल पावक गगन वायु में
रहे शांति चहुँ ओर
देख प्रकृति की ओर ।