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"देखो बसन्त आ गया / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

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  पीत पीत हुए पात  
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ठिठुरन का अन्त आ गया
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|रचनाकार= शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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पीत पीत हुए पात  
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सिकुड़ी-सिकुड़ी सी रात
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ठिठुरन का अन्त आ गया
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देखो बसन्त आ गया ।
  
मादक सुगन्ध से भरी  
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मादक सुगन्ध से भरी  
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
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पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
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कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरस बबरी
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इतराती फिरस बबरी
जाती है जहाँ दृष्टि
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जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल स्रष्टि
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मनहारी सकल स्रष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
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लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया।
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देखो बसन्त आ गया।
  
शीशम के तारुण्य का
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शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
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आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
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रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता
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कलियों का पूछता पता
सिमटी सी खड़ी भला
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सिमटी सी खड़ी भला
सकुचायी शकुन्तला
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सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
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मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।
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देखो बसन्त आ गया।
  
पर्वत का ऊँचा शिखर
+
पर्वत का ऊँचा शिखर
ओढ़े है किंशुकी सुमन
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ओढ़े है किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
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सरसों के फूलों भरा
मादक बासन्ती उपवन
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मादक बासन्ती उपवन
करने कामाग्नि दहन  
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करने कामाग्नि दहन  
केशरिया वस्त्र पहन  
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केशरिया वस्त्र पहन  
मानों कोई सन्त आ गया
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मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।।
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देखो बसन्त आ गया।।
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00:00, 20 जुलाई 2010 का अवतरण

  
पीत पीत हुए पात
सिकुड़ी-सिकुड़ी सी रात
ठिठुरन का अन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया ।

मादक सुगन्ध से भरी
पन्थ पन्थ आम्र मंजरी
कोयलिया कूक कूक कर
इतराती फिरस बबरी
जाती है जहाँ दृष्टि
मनहारी सकल स्रष्टि
लास्य दिग्दिगन्त छा गया
देखो बसन्त आ गया।

शीशम के तारुण्य का
आलिंगन करती लता
रस का अनुरागी भ्रमर
कलियों का पूछता पता
सिमटी सी खड़ी भला
सकुचायी शकुन्तला
मानो दुष्यन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।

पर्वत का ऊँचा शिखर
ओढ़े है किंशुकी सुमन
सरसों के फूलों भरा
मादक बासन्ती उपवन
करने कामाग्नि दहन
केशरिया वस्त्र पहन
मानों कोई सन्त आ गया
देखो बसन्त आ गया।।