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"होशंगाबाद- वैशिष्ट्यम / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर

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रे मन वसतु होशंगाबादे।
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रे मन वसतु होशंगाबादे।
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समय-विशिष्टं न तु कुरू नष्टं, व्यर्थे वाद-विवादे।
  
कृपया महादेव शिव-जाता, बहति नर्मदा माता।
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कृपया महादेव शिव-जाता, बहति नर्मदा माता।
संता: दृष्टा: कवय: व्यस्ता:, भगवद् गुणानुवादे।।
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संता: दृष्टा: कवय: व्यस्ता:, भगवद् गुणानुवादे।।
  
तापहरं सेठानी घट्टं, वाराणसी-सदृष्यं।
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तापहरं सेठानी घट्टं, वाराणसी-सदृष्यं।
सुखं वर्धयति शमयति क्लेशं विहरतु हर्ष विषादे।।
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सुखं वर्धयति शमयति क्लेशं विहरतु हर्ष विषादे।।
  
मंदिरेषु जप पूजनार्चनम्, यज्ञ हवन व्रत दानम्।
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मंदिरेषु जप पूजनार्चनम्, यज्ञ हवन व्रत दानम्।
परम् विशुद्धं वातावरणं, घंटा शंख निनादे।।
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परम् विशुद्धं वातावरणं, घंटा शंख निनादे।।
  
चतुर्पथास्तु सन्ति संसारे, सप्तपथोस्मिन्नगरे।
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चतुर्पथास्तु सन्ति संसारे, सप्तपथोस्मिन्नगरे।
चयनतु सरल यथेष्टं मार्गं, चलतु बिना उन्मादे।।
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चयनतु सरल यथेष्टं मार्गं, चलतु बिना उन्मादे।।
  
अत्र स्थितं प्रकाकोद्योगं, रचयति रूप्यक-पत्रम्।
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अत्र स्थितं प्रकाकोद्योगं, रचयति रूप्यक-पत्रम्।
कर्मकरास्त्वागता: सर्वत:, संमिलयन्त्याल्हादे।।
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कर्मकरास्त्वागता: सर्वत:, संमिलयन्त्याल्हादे।।
  
रेवा बंध हेतु आयातौ, भीमेन सुगिरि खण्डौ।
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रेवा बंध हेतु आयातौ, भीमेन सुगिरि खण्डौ।
संरक्षित इतिहासं उदरे, भवत: लुप्त प्रमादे।।
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संरक्षित इतिहासं उदरे, भवत: लुप्त प्रमादे।।
  
संत स्थितो रामजी बाबा, सअसंपृक्त समाधौ।
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संत स्थितो रामजी बाबा, सअसंपृक्त समाधौ।
आप्तकाम भव भक्त समूह:, प्रमुदति प्राप्त प्रसादे।।
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आप्तकाम भव भक्त समूह:, प्रमुदति प्राप्त प्रसादे।।
  
बान्द्राभानं तीर्थ पवित्रं, पश्यतु तवा संगमम्।
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बान्द्राभानं तीर्थ पवित्रं, पश्यतु तवा संगमम्।
प्रति वर्षे सम्मिलति मेलक:, विंध्याचल आच्छादे।।
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प्रति वर्षे सम्मिलति मेलक:, विंध्याचल आच्छादे।।
  
रे मन! वसतु होशंगाबादे...  
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रे मन! वसतु होशंगाबादे...  
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00:45, 20 जुलाई 2010 का अवतरण

रे मन वसतु होशंगाबादे।
समय-विशिष्टं न तु कुरू नष्टं, व्यर्थे वाद-विवादे।

कृपया महादेव शिव-जाता, बहति नर्मदा माता।
संता: दृष्टा: कवय: व्यस्ता:, भगवद् गुणानुवादे।।

तापहरं सेठानी घट्टं, वाराणसी-सदृष्यं।
सुखं वर्धयति शमयति क्लेशं विहरतु हर्ष विषादे।।

मंदिरेषु जप पूजनार्चनम्, यज्ञ हवन व्रत दानम्।
परम् विशुद्धं वातावरणं, घंटा शंख निनादे।।

चतुर्पथास्तु सन्ति संसारे, सप्तपथोस्मिन्नगरे।
चयनतु सरल यथेष्टं मार्गं, चलतु बिना उन्मादे।।

अत्र स्थितं प्रकाकोद्योगं, रचयति रूप्यक-पत्रम्।
कर्मकरास्त्वागता: सर्वत:, संमिलयन्त्याल्हादे।।

रेवा बंध हेतु आयातौ, भीमेन सुगिरि खण्डौ।
संरक्षित इतिहासं उदरे, भवत: लुप्त प्रमादे।।

संत स्थितो रामजी बाबा, सअसंपृक्त समाधौ।
आप्तकाम भव भक्त समूह:, प्रमुदति प्राप्त प्रसादे।।

बान्द्राभानं तीर्थ पवित्रं, पश्यतु तवा संगमम्।
प्रति वर्षे सम्मिलति मेलक:, विंध्याचल आच्छादे।।

रे मन! वसतु होशंगाबादे...