भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गहरी साजिश / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''' गहरी साज…)
 
 
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
हमारा अमन-चैन रेत हो गया है,
 
हमारा अमन-चैन रेत हो गया है,
 
हम अपने बदन टटोल कर भी  
 
हम अपने बदन टटोल कर भी  
शुष्क अन्तरिक्ष में जीवन की लालसा में
+
शुष्क अन्तरिक्ष में  
सदियों से गुम अपने होश नहीं ढूंढ  पा रहे हैं
+
जीवन की लालसा लिए,
 +
सदियों से गुम  
 +
अपने होश नहीं ढूंढ  पा रहे हैं
 
जबकि यह तय है कि  
 
जबकि यह तय है कि  
 
इस जमीन पर बचे-खुचे आक्सीजन से  
 
इस जमीन पर बचे-खुचे आक्सीजन से  

11:15, 20 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


गहरी साजिश


गहरी साजिश खेली जा रही है
साध्वी पृथ्वी के खिलाफ,
प्रकाश मार्गों से
एलियनों के दस्ते भेजे जा रहे हैं,
ख्यालगाह की उड़न तश्तरियाँ
स्थूलरूप धारण कर
हमारी टोह लेने लगी हैं,
इस अप्रत्याशितता में
हमारा अमन-चैन रेत हो गया है,
हम अपने बदन टटोल कर भी
शुष्क अन्तरिक्ष में
जीवन की लालसा लिए,
सदियों से गुम
अपने होश नहीं ढूंढ पा रहे हैं
जबकि यह तय है कि
इस जमीन पर बचे-खुचे आक्सीजन से
अन्तरिक्ष के निर्वात सीने में
जान नहीं फूंकी जा सकती है,
खगोलीय कंकालों को
वैदिक मंत्रों
या वैज्ञानिक प्रयोगों से
नहीं जिलाया जा सकता है.