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"शहर के बच्चे जो रोते नहीं हैं / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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आगंतुक संस्कृति के लिए  
 
आगंतुक संस्कृति के लिए  
 
कि शहर के बच्चे रोने से  
 
कि शहर के बच्चे रोने से  
बाज आ चुके हैं,
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बाज आ चुके हैं?
 
ज़रुरत नहीं है  
 
ज़रुरत नहीं है  
 
इस खुले सच की पड़ताल करने
 
इस खुले सच की पड़ताल करने
शोध-अनुसंधान करने की  
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या,शोध-अनुसंधान करने की  
कि किसी अभिशाप के चलते
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--कि किसी अभिशाप के चलते
उनकी आंखों का पानी
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  उनकी आंखों का पानी
रंग-बिरंगे नगों में तब्दील हो गया है
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  रंग-बिरंगे नगों में तब्दील हो गया है.

12:36, 20 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


शहर के बच्चे जो रोते नहीं हैं

और क्या हो सकता है
इससे बड़ा अपशकुन
आगंतुक संस्कृति के लिए
कि शहर के बच्चे रोने से
बाज आ चुके हैं?
ज़रुरत नहीं है
इस खुले सच की पड़ताल करने
या,शोध-अनुसंधान करने की
--कि किसी अभिशाप के चलते
  उनकी आंखों का पानी
  रंग-बिरंगे नगों में तब्दील हो गया है.