"सरोजिनी नगर के मुर्दाबाजार से प्रकृति-वर्णन / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | पला-पुसा नटखट बम | ||
+ | खेल-खेल में यहीं बज उठा था | ||
+ | छोड़ता हुआ फुलझड़ियों से | ||
+ | आदम खून की भभक | ||
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+ | सांध्य बेला | ||
+ | और छतों पर | ||
+ | गमलों में | ||
+ | प्रदूषण संग | ||
+ | राजपूती कबड्डी खेलती, | ||
+ | हफ़्तों-हफ़्तों से | ||
+ | खिलने को किलकती कलियाँ | ||
+ | औचक ही खिलकर मुरझा गईं | ||
+ | शहर की प्रकृति को | ||
+ | फालतू में बदनाम कर गईं | ||
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+ | पत्तियों को तरसते पेड़ों की | ||
+ | चरमराती डालियों पर | ||
+ | धूम्रपान के नशे में ढुलकती गोरैयाएं | ||
+ | सम्हल न पाईं हवा में, | ||
+ | फड़फड़ाहट गुम हो गई कहीं | ||
+ | गिर पड़ीं छछुन्दरों की मांद में | ||
+ | शाकाहारियों को मांसाहारी बना गईं | ||
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+ | ऊपर जमी | ||
+ | धुओं की मलाई फट गई | ||
+ | चन्द्र-दर्शन के लिए खिड़की बन गई, | ||
+ | कौवे क़ैद से रिहा हो गए | ||
+ | तितलियों के पंख छितर गए | ||
+ | बिल्लियाँ रसोईं छोड़ | ||
+ | नगर के मुर्दाबाजार में | ||
+ | दावत उड़ाने आ गईं | ||
+ | और चूहे भी बेखटक लुटेरे हो गए. |
15:59, 20 जुलाई 2010 का अवतरण
सरोजिनी नगर के मुर्दाबाजार से प्रकृति-वर्णन
सरोजिनी नगर के मुर्दाबाजार से प्रकृति-वर्णन
नगर की पेट में
पला-पुसा नटखट बम
खेल-खेल में यहीं बज उठा था
छोड़ता हुआ फुलझड़ियों से
आदम खून की भभक
सांध्य बेला
और छतों पर
गमलों में
प्रदूषण संग
राजपूती कबड्डी खेलती,
हफ़्तों-हफ़्तों से
खिलने को किलकती कलियाँ
औचक ही खिलकर मुरझा गईं
शहर की प्रकृति को
फालतू में बदनाम कर गईं
पत्तियों को तरसते पेड़ों की
चरमराती डालियों पर
धूम्रपान के नशे में ढुलकती गोरैयाएं
सम्हल न पाईं हवा में,
फड़फड़ाहट गुम हो गई कहीं
गिर पड़ीं छछुन्दरों की मांद में
शाकाहारियों को मांसाहारी बना गईं
ऊपर जमी
धुओं की मलाई फट गई
चन्द्र-दर्शन के लिए खिड़की बन गई,
कौवे क़ैद से रिहा हो गए
तितलियों के पंख छितर गए
बिल्लियाँ रसोईं छोड़
नगर के मुर्दाबाजार में
दावत उड़ाने आ गईं
और चूहे भी बेखटक लुटेरे हो गए.