भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"यात्री चंचल / त्रिलोचन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("यात्री चंचल / त्रिलोचन" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:29, 20 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
अभिनायक शर्मा बोले, "मुझ को पीना था
कुछ दिन और गरल जीवन का तभी बच गया ।"
अभिनायिका माधुरी बोल उठीं, "छीना था
प्राण आपने क्रूर काल से । जभी रच गया
मन अपने आदर्श लगन से, सभी जच गया
नया पुराना एक दृष्टि में । भावना जगी
कुछ कर जाने की, गरिष्ठ शोक भी पच गया ।"
कतवारू बोला, "मुखार से वचन से सगी
विपदा मुझे आपकी लगती है । कहाँ लगी
थी अजगरी भीड़ वह जिस ने कवर बनाया
नर, नारी, बूढ़े, बच्चे का, कुछ नहीं डगी ।"
"संगम पर ।" कोई बोला, "सब झूठ बताया ।"
रेल दौड़ती हुई, बात से यात्री चंचल,
मन को मोड़ा, देखा विंध्याचल का अंचल ।