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"कविता-5 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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रोना बेकार है
 
रोना बेकार है
व्‍यर्थ है यह जलती अग्नि ईच्‍छाओं की।
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व्‍यर्थ है यह जलती अग्नि इच्‍छाओं की।
 
सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है।
 
सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है।
 
जंगल में धुंधलका है और आकाश मोहक है।
 
जंगल में धुंधलका है और आकाश मोहक है।
उदास आंखों से देखते आहिस्‍ता कदमों से
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उदास आँखों से देखते आहिस्‍ता क़दमों से
 
दिन की विदाई के साथ
 
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तारे उगे जा रहे हैं।
 
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तुम्‍हारे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए
 
तुम्‍हारे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए
और अपनी भूखी आंखों में तुम्‍हारी आंखेां को
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और अपनी भूखी आँखों में तुम्‍हारी आँखों को
 
कैद करते हुए,
 
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ढूंढते और रोते हुए,कि कहां हो तुम,
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ढूँढते और रोते हुए, कि कहाँ हो तुम,
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कहाँ ओ, कहाँ हो...
 
तुम्‍हारे भीतर छिपी
 
तुम्‍हारे भीतर छिपी
वह अनंत अग्नि कहां है...
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वह अनंत अग्नि कहाँ है...
  
जैसे गहन संध्‍याकाश को आकेला तारा अपने अनंत
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जैसे गहन संध्‍याकाश को अकेला तारा अपने अनंत
रहस्‍येां के साथ स्‍वर्ग का प्रकाश, तुम्‍हारी आंखेां में
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रहस्‍यों के साथ स्‍वर्ग का प्रकाश, तुम्‍हारी आँखों में
कांप रहा है,जिसके अंतर में गहराते रहस्‍यों के बीच
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काँप रहा है,जिसके अंतर में गहराते रहस्‍यों के बीच
वहां एक आत्‍मस्‍तंभ चमक रहा है।
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वहाँ एक आत्‍मस्‍तंभ चमक रहा है।
  
अवाक एकटक यह सब देखता हूं मैं
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अवाक एकटक यह सब देखता हूँ मैं
 
अपने भरे हृदय के साथ
 
अपने भरे हृदय के साथ
अनंत गहराई में छलांग लगा देता हूं,
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अनंत गहराई में छलांग लगा देता हूँ,
 
अपना सर्वस्‍व खोता हुआ।
 
अपना सर्वस्‍व खोता हुआ।
  
'''अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल
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'''अंग्रेज़ी से अनुवाद - कुमार मुकुल'''
 
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20:43, 21 जुलाई 2010 के समय का अवतरण

रोना बेकार है
व्‍यर्थ है यह जलती अग्नि इच्‍छाओं की।
सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है।
जंगल में धुंधलका है और आकाश मोहक है।
उदास आँखों से देखते आहिस्‍ता क़दमों से
दिन की विदाई के साथ
तारे उगे जा रहे हैं।

तुम्‍हारे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए
और अपनी भूखी आँखों में तुम्‍हारी आँखों को
कैद करते हुए,
ढूँढते और रोते हुए, कि कहाँ हो तुम,
कहाँ ओ, कहाँ हो...
तुम्‍हारे भीतर छिपी
वह अनंत अग्नि कहाँ है...

जैसे गहन संध्‍याकाश को अकेला तारा अपने अनंत
रहस्‍यों के साथ स्‍वर्ग का प्रकाश, तुम्‍हारी आँखों में
काँप रहा है,जिसके अंतर में गहराते रहस्‍यों के बीच
वहाँ एक आत्‍मस्‍तंभ चमक रहा है।

अवाक एकटक यह सब देखता हूँ मैं
अपने भरे हृदय के साथ
अनंत गहराई में छलांग लगा देता हूँ,
अपना सर्वस्‍व खोता हुआ।

अंग्रेज़ी से अनुवाद - कुमार मुकुल