भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घुटन / गुलज़ार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=गुलज़ार |संग्रह = पुखराज / गुलज़ार }} <poem> जी में आता है क…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:31, 24 जुलाई 2010 का अवतरण
जी में आता है कि इस कान में सुराख़ करूँ
खींचकर दूसरी जानिब से निकलूँ उसको
सारी की सारी निचोडूं ये रगें साफ़ करूँ
भर दूँ रेशम की जुलाई हुई भुक्की इसमें
कह्कहाती हुई भीड़ में शामिल होकर
मैं भी एक बार हँसू, खूब हँसू, खूब हँसू