"आरण्यक / परमानंद श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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एक दिन हम खो जाएँगे | एक दिन हम खो जाएँगे | ||
− | छिप | + | छिप जाएँगे दुनिया से |
रहने लगेंगे | रहने लगेंगे | ||
अदृश्य कोटर में | अदृश्य कोटर में | ||
पंक्ति 16: | पंक्ति 13: | ||
पेड़ में गजमुख | पेड़ में गजमुख | ||
आसमान की पीठ पर चन्द्रमा | आसमान की पीठ पर चन्द्रमा | ||
− | + | डालियाँ सूखी छितराई आसपास | |
सभी पूछेंगे | सभी पूछेंगे | ||
पंक्ति 23: | पंक्ति 20: | ||
हम एक दूसरे को देखेंगे और | हम एक दूसरे को देखेंगे और | ||
कुछ भी कहने से पहले | कुछ भी कहने से पहले | ||
− | + | मुस्कराएँगे | |
फिर भी कुछ भी बताना हमें | फिर भी कुछ भी बताना हमें | ||
निरर्थक लगेगा | निरर्थक लगेगा | ||
− | एक दिन हम छोड़ | + | एक दिन हम छोड़ जाएँगे |
यह घर ये दीवारें या आँगन | यह घर ये दीवारें या आँगन | ||
यह छत | यह छत | ||
यह किताबों का गट्ठर | यह किताबों का गट्ठर | ||
− | + | काग़ज़ों का अम्बार बेतरतीब | |
बेसंभाल | बेसंभाल | ||
फिर हम खोजने नहीं आएँगे | फिर हम खोजने नहीं आएँगे | ||
− | इनमें दबी हुई | + | इनमें दबी हुई चिट्ठियाँ |
− | + | अख़बारों की कतरनें | |
प्रियजनों की पदचाप | प्रियजनों की पदचाप | ||
अपने हुनर की गुमनाम परछाईयाँ | अपने हुनर की गुमनाम परछाईयाँ | ||
पंक्ति 48: | पंक्ति 45: | ||
कूट भाषा में प्रेम | कूट भाषा में प्रेम | ||
खेल के रहस्यमय इशारे | खेल के रहस्यमय इशारे | ||
− | कोई | + | कोई फ़ोन नंबर |
जो काम आता रहा हो बुरे दिनों में | जो काम आता रहा हो बुरे दिनों में | ||
− | एक दिन हम छिप | + | एक दिन हम छिप जाएँगे |
चन्द्रमा की परिधि के आसपास | चन्द्रमा की परिधि के आसपास | ||
पंक्ति 57: | पंक्ति 54: | ||
हंस तैर रहे होंगे | हंस तैर रहे होंगे | ||
बत्तखें कर रही होंगी कल्लोल | बत्तखें कर रही होंगी कल्लोल | ||
− | हमारे वजूद से | + | हमारे वजूद से बेख़बर |
एक साथ कई नीलकंठ सगुन मनाते | एक साथ कई नीलकंठ सगुन मनाते | ||
पंक्ति 65: | पंक्ति 62: | ||
फिर हमें अचानक याद आएगा | फिर हमें अचानक याद आएगा | ||
नहीं की हमने कोई वसीयत समय रहते | नहीं की हमने कोई वसीयत समय रहते | ||
− | नहीं किया कोई | + | नहीं किया कोई बँटवारा |
घर-द्वार | घर-द्वार | ||
हाट-दुकान का | हाट-दुकान का | ||
पंक्ति 74: | पंक्ति 71: | ||
दुनिया से निबटना | दुनिया से निबटना | ||
− | एक दिन | + | एक दिन असफलताएँ चुपके से |
आकर बता जाएँगी | आकर बता जाएँगी | ||
एक जन्म का वृत्तांत | एक जन्म का वृत्तांत | ||
− | कि कैसे दीमकों ने | + | कि कैसे दीमकों ने जगह बना ली |
शरीर के भीतर | शरीर के भीतर | ||
− | सफाचट कर गईं | + | सफाचट कर गईं अलमारियाँ बहीखाते |
बढ़ा-चढ़ाकर हमारा दुःख हमारी भूलें | बढ़ा-चढ़ाकर हमारा दुःख हमारी भूलें | ||
− | बयाँ करेंगी | + | बयाँ करेंगी असफलताएँ |
− | जिनसे भागकर हम आ छिपे | + | जिनसे भागकर हम आ छिपे यहाँ |
सुनसान जगहों में | सुनसान जगहों में | ||
हम अब झुकेंगे नहीं उनके आगे | हम अब झुकेंगे नहीं उनके आगे | ||
उन्हें अनसुना कर | उन्हें अनसुना कर | ||
− | कहीं और खिसका | + | कहीं और खिसका जाएँगे |
कहीं और जा छिपेंगे | कहीं और जा छिपेंगे | ||
पंक्ति 95: | पंक्ति 92: | ||
कि कोई पहचाने तो पहचाने | कि कोई पहचाने तो पहचाने | ||
− | नहीं तो | + | नहीं तो ख़ुश रहे मदमाते ऐश्वर्य में |
यह उजाड़ जैसा भी हो | यह उजाड़ जैसा भी हो | ||
पंक्ति 105: | पंक्ति 102: | ||
रिश्ते टूटते हैं | रिश्ते टूटते हैं | ||
तो हर बार नए-नए | तो हर बार नए-नए | ||
− | बन ही तो जाते हैं | + | बन ही तो जाते हैं । |
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08:15, 27 जुलाई 2010 का अवतरण
एक दिन हम खो जाएँगे
छिप जाएँगे दुनिया से
रहने लगेंगे
अदृश्य कोटर में
पेड़ में गजमुख
आसमान की पीठ पर चन्द्रमा
डालियाँ सूखी छितराई आसपास
सभी पूछेंगे
छिपने का राज
हम एक दूसरे को देखेंगे और
कुछ भी कहने से पहले
मुस्कराएँगे
फिर भी कुछ भी बताना हमें
निरर्थक लगेगा
एक दिन हम छोड़ जाएँगे
यह घर ये दीवारें या आँगन
यह छत
यह किताबों का गट्ठर
काग़ज़ों का अम्बार बेतरतीब
बेसंभाल
फिर हम खोजने नहीं आएँगे
इनमें दबी हुई चिट्ठियाँ
अख़बारों की कतरनें
प्रियजनों की पदचाप
अपने हुनर की गुमनाम परछाईयाँ
कैसी दबी हुई सिसकी निकलती है
जब हमें मिल जाता है इसे कबाड़ में
मित्र का गुपचुप संकेत
कोई अकेला शब्द
कूट भाषा में प्रेम
खेल के रहस्यमय इशारे
कोई फ़ोन नंबर
जो काम आता रहा हो बुरे दिनों में
एक दिन हम छिप जाएँगे
चन्द्रमा की परिधि के आसपास
चन्द्रमा दिखेगा मानसरोवर-सा
हंस तैर रहे होंगे
बत्तखें कर रही होंगी कल्लोल
हमारे वजूद से बेख़बर
एक साथ कई नीलकंठ सगुन मनाते
चुप बैठे होंगे
नहाई रोशनाई में
फिर हमें अचानक याद आएगा
नहीं की हमने कोई वसीयत समय रहते
नहीं किया कोई बँटवारा
घर-द्वार
हाट-दुकान का
थोड़ा पछतावा होगा थोड़ा दिलासा
कि दुनिया सिखा देती है
हमारी संततियों को
दुनिया से निबटना
एक दिन असफलताएँ चुपके से
आकर बता जाएँगी
एक जन्म का वृत्तांत
कि कैसे दीमकों ने जगह बना ली
शरीर के भीतर
सफाचट कर गईं अलमारियाँ बहीखाते
बढ़ा-चढ़ाकर हमारा दुःख हमारी भूलें
बयाँ करेंगी असफलताएँ
जिनसे भागकर हम आ छिपे यहाँ
सुनसान जगहों में
हम अब झुकेंगे नहीं उनके आगे
उन्हें अनसुना कर
कहीं और खिसका जाएँगे
कहीं और जा छिपेंगे
कृतिका नक्षत्र बनकर
कि कोई पहचाने तो पहचाने
नहीं तो ख़ुश रहे मदमाते ऐश्वर्य में
यह उजाड़ जैसा भी हो
है तो हमारा ही चुना हुआ
हमारी हिक़मत की एक नई सृष्टि
उजाड़ में उज्ज्वल
रिश्ते टूटते हैं
तो हर बार नए-नए
बन ही तो जाते हैं ।