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छो (Satish Verma)
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09:47, 29 जुलाई 2010 का अवतरण

छत द्वारा सीमित

एक बुलबुले के किनारे पर बैठे हुए, ऊष्मित गुमनामी की एक अनन्त लौ जलाते हुए, प्रत्येक हाथ में अपने पूर्वजों की एक एक खोपड़ी लेकर, विवादक पर जवाबी हमले के लिये तुम नाभि-नाड़ी को तोड़ने के अपराध के लिये तैयार हो जाते हो

बहिष्कृत तुम निर्जल क्षेत्र में, जहाँ चिंकारे जबरदस्त थी छोड़ दिये गये है, झुलसे हुए, एक आँख पर थिगली रबड़ की रानें, गोली खाकर खून के पोखर में लेटे हुए, आतंक के कड़ाह में, सूर्य की चकाचौंध मरमर में दरारे पैदा कर रही थी

काले जूतों की कृपणता बोरवेल का दर्पण बनती है जो नीले होठों की मुस्कान के रंग को धो डालती है जुगनू सजा के अंधियारे में डूबे जाते हैं

सतीश वर्मा