भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"Kavita Kosh:पंजीकृत सदस्य" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
|
|
पंक्ति 1: |
पंक्ति 1: |
− | छत द्वारा सीमित
| |
| | | |
− | एक बुलबुले के किनारे पर बैठे हुए, ऊष्मित
| |
− | गुमनामी की एक अनन्त लौ जलाते हुए, प्रत्येक हाथ में
| |
− | अपने पूर्वजों की एक एक खोपड़ी लेकर, विवादक
| |
− | पर जवाबी हमले के लिये तुम नाभि-नाड़ी
| |
− | को तोड़ने के अपराध के लिये तैयार हो जाते हो
| |
− |
| |
− | बहिष्कृत तुम निर्जल क्षेत्र में, जहाँ चिंकारे जबरदस्त थी
| |
− | छोड़ दिये गये है, झुलसे हुए, एक आँख पर थिगली
| |
− | रबड़ की रानें, गोली खाकर खून के पोखर में
| |
− | लेटे हुए, आतंक के कड़ाह में, सूर्य की चकाचौंध
| |
− | मरमर में दरारे पैदा कर रही थी
| |
− |
| |
− | काले जूतों की कृपणता बोरवेल का दर्पण बनती है
| |
− | जो नीले होठों की मुस्कान के रंग को धो डालती है
| |
− | जुगनू सजा के अंधियारे में डूबे जाते हैं
| |
− |
| |
− | सतीश वर्मा
| |
09:50, 29 जुलाई 2010 के समय का अवतरण