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"और रात में / लीलाधर मंडलोई" के अवतरणों में अंतर

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13:21, 29 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


घर के पिछवाड़े एक झोपड़ी
वहां एक परछाईं है
जो रात गए रोती है

वह तो एक बेवा की झोपड़ी
जो तेज-तर्रार बहुत
इतनी कि उसके मर्दानगी के किस्‍से कई

हर कोई उससे खौफजदा
उसकी तरफ देखना भी
तो बस चुराते हुए आंखें

रात के सहरा में फिर ये कौन
जो रोता है बेतरह
मैं सोचता हूं तो जेहन में
झोपड़ी कौंध-कौंध जाती है

कहीं ये वही बेवा तो नहीं
जो दिन में कुछ और है
और रात में
जिंदगी के तमाम दुःखों से
इस तरह से टूट जाती है
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