"लड़की, लाश और कूड़ा / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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+ | वह शायद | ||
+ | सौतेली माँ के बर्ताव से तंग आकर | ||
+ | रात के हिंसक होने से पहले | ||
+ | निकली थी | ||
+ | अपने भाई का सहारा जोहने, | ||
+ | भटक गई थी रास्ता | ||
+ | मवाली सड़कों पर, | ||
+ | जिन पर नहीं देखे थे | ||
+ | इतने कटाहे कुत्ते उसने | ||
+ | जो उसका लगातार | ||
+ | पीछा करते जा रहे थे, | ||
+ | जैसे संझियाई रात | ||
+ | घुप्प अंधियारी रात में | ||
+ | मिमियाती हुई समाती जा रही हो | ||
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+ | चलते-चलते | ||
+ | अहसास हुआ उसे | ||
+ | कि काले बादलों पर बैठा चाँद | ||
+ | उसे देख | ||
+ | वहशी होता जा रहा है, | ||
+ | जो चंद मिनटों में | ||
+ | उसके आगे कूदकर | ||
+ | उसे धर-दबोचेगा | ||
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+ | उसके जिस्म का पोर-पोर | ||
+ | हांफने लगा, | ||
+ | डरे-सहमे रोएँ | ||
+ | चाँव-चाँव करने लगे, | ||
+ | उस वक़्त, वह चिल्लाना चाह रही थी-- | ||
+ | 'बचाओ, बचाओ...' | ||
+ | पर उसकी आवाज़ को | ||
+ | होठ से कहाँ फूटने दे रही थी-- | ||
+ | उल्लुओं की धिकधिकाहट | ||
+ | कौवों की कौव्वाहट | ||
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+ | उसे लगा | ||
+ | कि सारी कायनात | ||
+ | शामिल होती जा रही है | ||
+ | उसके खिलाफ, | ||
+ | एक पूर्व-नियोजित से षडयंत्र में, | ||
+ | वह भागने लगी | ||
+ | बेतहाशा दौड़ने लगी | ||
+ | सिर पर पैर रखकर रपटने लगी | ||
+ | क्योंकि भेड़िया-बने कुत्ते | ||
+ | उसे नोचने लगे थे, | ||
+ | चाँद उसके आगे कूदकर | ||
+ | दबोचने वाला था | ||
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+ | तभी, वह टप्प से | ||
+ | मुंह के बल गिरते-गिरते | ||
+ | रुक गई, | ||
+ | एक पुलिस-भरी जीप | ||
+ | उसके सामने धड़ाम-से खड़ी थी | ||
+ | उसके साँसों में सांस आई | ||
+ | पहले उसने लम्बी राहत की सांस ली | ||
+ | क्योंकि चाँद वापस | ||
+ | काले बादलों पर जा बैठा था | ||
+ | और बिसहे कुत्ते फुटपाथी शेडों में | ||
+ | नाइट बस की प्रतीक्षा करने वाले | ||
+ | शरीफ आदमी बन | ||
+ | खड़े थे | ||
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+ | हेड कांस्टेबल ने उतरते ही | ||
+ | उसे झाड़ पिलाई, | ||
+ | फिर, उसे रेडियोग्राम की तरह | ||
+ | जीप में बीचो-बीच रख दिया, | ||
+ | वे उसे वहीं से | ||
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+ | वह बेशक! | ||
+ | बड़ा मीठा गा रही थी | ||
+ | उनका जी बहला रही थे | ||
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+ | थाने पहुँचने के बाद | ||
+ | उन्होंने कभी उसे | ||
+ | पेशाबखाने में पेश किया | ||
+ | तो कभी डाइनिंग टेबल की | ||
+ | तश्तरी में परोसा, | ||
+ | अभी उस मनाबहलौवी को लाने से पहले | ||
+ | उन्होंने भरपूर शराब पी थी, | ||
+ | पर, अब उन्हें | ||
+ | गरमागरम चिकन भी मिल गई थी, | ||
+ | वे खुश थे कि उन्हें | ||
+ | डाइनिंग टेबल पर | ||
+ | सब कुछ मिल गया था, | ||
+ | उनका अधूरा डिनर | ||
+ | पूरा हो गया था | ||
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+ | सुबह, वे किरणों की चुभन से उठे | ||
+ | तो उन्हें रेडियोग्राम टुकड़ों में मिला | ||
+ | और तश्तरियों में | ||
+ | चिचोरी हड्डियों की | ||
+ | चीपें-खोइयाँ मिलीं | ||
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+ | तब थानेदार ने | ||
+ | रोजमर्राई हुक्म सुनाई-- | ||
+ | 'इतनी बिखेर क्यों रखी है जूठन | ||
+ | फ़टाफ़ट निपटाओ उन्हें' | ||
+ | फिर, वे छीजनों को थैले में भर | ||
+ | निकल पड़े लांग ड्राइव पर | ||
+ | |||
+ | अगली रात, | ||
+ | फिर, एक लड़की | ||
+ | सड़कों पर भटक गई; | ||
+ | कटहे कुत्ते उसे नोचने लगे | ||
+ | उल्लू और कौवे उसकी चिचियाहट खा-पचा गए | ||
+ | फिर, पुलिस उसे जीप में बैठा | ||
+ | थाने ले गई | ||
+ | और अगली सुबह | ||
+ | हिंडन पुल के नीचे | ||
+ | उसे बतौर कूड़ा निपटाने | ||
+ | श्मशान के बहाने | ||
+ | लांग ड्राइव पर निकल गई. |
17:39, 29 जुलाई 2010 के समय का अवतरण
लड़की, लाश और कूड़ा
वे बस! उससे
खेल भर रहे थे
पिछली रात ससे
उसके टूटकर चूर होने तक
वह शायद
सौतेली माँ के बर्ताव से तंग आकर
रात के हिंसक होने से पहले
निकली थी
अपने भाई का सहारा जोहने,
भटक गई थी रास्ता
मवाली सड़कों पर,
जिन पर नहीं देखे थे
इतने कटाहे कुत्ते उसने
जो उसका लगातार
पीछा करते जा रहे थे,
जैसे संझियाई रात
घुप्प अंधियारी रात में
मिमियाती हुई समाती जा रही हो
चलते-चलते
अहसास हुआ उसे
कि काले बादलों पर बैठा चाँद
उसे देख
वहशी होता जा रहा है,
जो चंद मिनटों में
उसके आगे कूदकर
उसे धर-दबोचेगा
उसके जिस्म का पोर-पोर
हांफने लगा,
डरे-सहमे रोएँ
चाँव-चाँव करने लगे,
उस वक़्त, वह चिल्लाना चाह रही थी--
'बचाओ, बचाओ...'
पर उसकी आवाज़ को
होठ से कहाँ फूटने दे रही थी--
उल्लुओं की धिकधिकाहट
कौवों की कौव्वाहट
उसे लगा
कि सारी कायनात
शामिल होती जा रही है
उसके खिलाफ,
एक पूर्व-नियोजित से षडयंत्र में,
वह भागने लगी
बेतहाशा दौड़ने लगी
सिर पर पैर रखकर रपटने लगी
क्योंकि भेड़िया-बने कुत्ते
उसे नोचने लगे थे,
चाँद उसके आगे कूदकर
दबोचने वाला था
तभी, वह टप्प से
मुंह के बल गिरते-गिरते
रुक गई,
एक पुलिस-भरी जीप
उसके सामने धड़ाम-से खड़ी थी
उसके साँसों में सांस आई
पहले उसने लम्बी राहत की सांस ली
क्योंकि चाँद वापस
काले बादलों पर जा बैठा था
और बिसहे कुत्ते फुटपाथी शेडों में
नाइट बस की प्रतीक्षा करने वाले
शरीफ आदमी बन
खड़े थे
हेड कांस्टेबल ने उतरते ही
उसे झाड़ पिलाई,
फिर, उसे रेडियोग्राम की तरह
जीप में बीचो-बीच रख दिया,
वे उसे वहीं से
बजाने लगे
वह बेशक!
बड़ा मीठा गा रही थी
उनका जी बहला रही थे
थाने पहुँचने के बाद
उन्होंने कभी उसे
पेशाबखाने में पेश किया
तो कभी डाइनिंग टेबल की
तश्तरी में परोसा,
अभी उस मनाबहलौवी को लाने से पहले
उन्होंने भरपूर शराब पी थी,
पर, अब उन्हें
गरमागरम चिकन भी मिल गई थी,
वे खुश थे कि उन्हें
डाइनिंग टेबल पर
सब कुछ मिल गया था,
उनका अधूरा डिनर
पूरा हो गया था
सुबह, वे किरणों की चुभन से उठे
तो उन्हें रेडियोग्राम टुकड़ों में मिला
और तश्तरियों में
चिचोरी हड्डियों की
चीपें-खोइयाँ मिलीं
तब थानेदार ने
रोजमर्राई हुक्म सुनाई--
'इतनी बिखेर क्यों रखी है जूठन
फ़टाफ़ट निपटाओ उन्हें'
फिर, वे छीजनों को थैले में भर
निकल पड़े लांग ड्राइव पर
अगली रात,
फिर, एक लड़की
सड़कों पर भटक गई;
कटहे कुत्ते उसे नोचने लगे
उल्लू और कौवे उसकी चिचियाहट खा-पचा गए
फिर, पुलिस उसे जीप में बैठा
थाने ले गई
और अगली सुबह
हिंडन पुल के नीचे
उसे बतौर कूड़ा निपटाने
श्मशान के बहाने
लांग ड्राइव पर निकल गई.