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"क्या तकल्लुफ करे ये कहने में / जॉन एलिया" के अवतरणों में अंतर
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− | क्या | + | क्या तकल्लुफ़ |
− | जो भी खुश है हम उससे जलते | + | करें ये कहने में |
+ | जो भी खुश है हम उससे जलते हैं | ||
− | है उसे दूर का | + | है उसे दूर का सफ़र करके |
− | हम | + | हम सँभाले नहीं सँभलते हैं |
− | है अजब | + | है अजब फ़ैसले का सहरा भी |
− | चल न पड़िए तो पाँव जलते | + | चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं |
− | हो रहा हूँ मैं किस | + | हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद |
− | देखने वाले हाथ मलते | + | देखने वाले हाथ मलते हैं |
− | तुम बनो रंग, तुम बनो | + | तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू |
− | हम तो अपने | + | हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं |
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10:27, 1 अगस्त 2010 का अवतरण
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क्या तकल्लुफ़
करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं
है उसे दूर का सफ़र करके
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं
है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं
हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं
तुम बनो रंग, तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं