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"गजगामिनि / शास्त्री नित्यगोपाल कटारे" के अवतरणों में अंतर
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− | + | मम मन-अन्तर्यामिनि ।। | |
− | + | गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि । | |
− | + | स्वात्मानं पश्यन्त्यादर्शे, | |
− | + | लज्जास्मित-गौरांगिनि । | |
− | + | अधोमुखी विलोकयसि धरणीं, | |
− | + | निजस्वरूप-अभिमानिनि ।। | |
− | + | गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि । | |
− | + | कथयसि कथं न किं कामयसे, | |
− | + | हे भावी-गृहस्वामिनि । | |
− | + | शीघ्रं कुरु हर मम परितापं, | |
− | + | कामज्वर-अपहारिणि ।। | |
− | + | गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि । | |
− | + | हे लघु वस्त्रे हे नयनास्त्रे, | |
− | + | हे मम मनोविलासिनि । | |
− | + | मा कुरु वक्र-दृष्टि-प्रक्षेपं | |
− | + | भो भो मारुति-वाहिनि ।। | |
− | + | गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि । | |
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00:14, 3 अगस्त 2010 का अवतरण
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।
हँससि किमर्थं त्वं माम दृष्ट्वा,
तिष्ठ क्षणं हे कामिनि ।
मार्गे चलसि सर्वतः पश्यसि,
हे घनविद्युद्दामिनि ।
खण्ड-खण्डितं पण्डित हृदयं
मम मन-अन्तर्यामिनि ।।
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।
स्वात्मानं पश्यन्त्यादर्शे,
लज्जास्मित-गौरांगिनि ।
अधोमुखी विलोकयसि धरणीं,
निजस्वरूप-अभिमानिनि ।।
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।
कथयसि कथं न किं कामयसे,
हे भावी-गृहस्वामिनि ।
शीघ्रं कुरु हर मम परितापं,
कामज्वर-अपहारिणि ।।
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।
हे लघु वस्त्रे हे नयनास्त्रे,
हे मम मनोविलासिनि ।
मा कुरु वक्र-दृष्टि-प्रक्षेपं
भो भो मारुति-वाहिनि ।।
गच्छसि कुत्र अरी गजगामिनि ।