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"निराकार सत्य / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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मदमाती और इठलाती
 
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और नहलाती  
 
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शुभ्र तृष्णा जल से
 
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स्याह हुए मन को
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जो सुप्त हुआ है
 
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जिसका अंतहीन व्योम
 
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सिकुड़ गया है
 
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फूट कर बनने के लिए  
 
फूट कर बनने के लिए  
 
एक निराकार सत्य.
 
एक निराकार सत्य.

13:56, 3 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

निराकार सत्य

झांक रहा हूं
स्मृत्यायन से--
एक सुनहले गांव की संध्या,
मदमाती और इठलाती
और नहलाती
शुभ्र तृष्णा जल से
स्याह हुए मन को,
जो सुप्त हुआ है
हताशा में,
जिसका अंतहीन व्योम
सिकुड़ गया है
बिंदु-सरिस बुलबुले में--
फूट कर बनने के लिए
एक निराकार सत्य.