"संगीतमय भीड़ / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
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''' संगीतमय भीड़ ''' | ''' संगीतमय भीड़ ''' | ||
− | कभी भी | + | कभी भी |
+ | कहीं भी | ||
आदमी का होना ही | आदमी का होना ही | ||
− | संगीत का स्वत: स्रोत है | + | संगीत का स्वत: स्रोत है, |
− | यानी ज़िंदा आदमी | + | यानी, ज़िंदा आदमी |
एक चलता-फिरता | एक चलता-फिरता | ||
− | वाद्य यंत्र | + | वाद्य यंत्र है, |
वह जहां भी हो | वह जहां भी हो | ||
जैसा भी हो | जैसा भी हो | ||
पंक्ति 21: | पंक्ति 22: | ||
गरमाहट तक आलापती है | गरमाहट तक आलापती है | ||
और जब कुछ आदमी | और जब कुछ आदमी | ||
− | भीड़ बना रहे हों | + | भीड़ बना रहे हों, |
उसकी संगीतात्मकता | उसकी संगीतात्मकता | ||
कई गुना बढ़ जाती है | कई गुना बढ़ जाती है | ||
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भौंरे का गुनगुनाना | भौंरे का गुनगुनाना | ||
क्योंकि कलियों संग | क्योंकि कलियों संग | ||
− | उसकी रति- | + | उसकी रति-रतता के दौरान |
झंकृत होते झांझ के | झंकृत होते झांझ के | ||
पंक-मग्न होने की तरह | पंक-मग्न होने की तरह | ||
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उसके गुनगुन की क्षणभंगुरता | उसके गुनगुन की क्षणभंगुरता | ||
और उसकी | और उसकी | ||
− | + | स्वांत:सुखाय कामुक उन्मत्तता | |
जबकि भीड़ की सरस धुन | जबकि भीड़ की सरस धुन | ||
होती है अछूती-- | होती है अछूती-- | ||
पंक्ति 58: | पंक्ति 59: | ||
सत्संग में ऊंघ रही हो | सत्संग में ऊंघ रही हो | ||
या स्टेशनों पर थक-छककर | या स्टेशनों पर थक-छककर | ||
− | जम्हाइयाँ-अंगड़ाइयां ले रही हो | + | जम्हाइयाँ-अंगड़ाइयां ले रही हो, |
ऐसे में वह छोड़ जाती है-- | ऐसे में वह छोड़ जाती है-- | ||
संगीत का अविरल रेला | संगीत का अविरल रेला | ||
पंक्ति 79: | पंक्ति 80: | ||
राम और कृष्ण के विरुद्ध | राम और कृष्ण के विरुद्ध | ||
युद्ध-प्रलाप | युद्ध-प्रलाप | ||
− | या कृष्ण अर्जुन से | + | या कृष्ण, अर्जुन से |
गीता रहे हों आलाप | गीता रहे हों आलाप | ||
और राम, बेहोश लखन पर | और राम, बेहोश लखन पर | ||
− | कर रहे हों अथक विलाप | + | कर रहे हों-- |
+ | अथक विलाप | ||
खोए बच्चे का आर्त्त क्रंदन | खोए बच्चे का आर्त्त क्रंदन | ||
पंक्ति 121: | पंक्ति 123: | ||
भीड़ की गुनगुनाहट | भीड़ की गुनगुनाहट | ||
भावनाओं के साथ नहीं करती है | भावनाओं के साथ नहीं करती है | ||
− | कोई पक्षपात | + | कोई पक्षपात, |
अर्थात जब हम मुस्कराना चाहें | अर्थात जब हम मुस्कराना चाहें | ||
वह गलाफोड़ हंसी हंसती है | वह गलाफोड़ हंसी हंसती है | ||
और जब हम क्लेशित हों | और जब हम क्लेशित हों | ||
वह बिलख-बिलख रोती है. | वह बिलख-बिलख रोती है. |
14:14, 3 अगस्त 2010 का अवतरण
संगीतमय भीड़
कभी भी
कहीं भी
आदमी का होना ही
संगीत का स्वत: स्रोत है,
यानी, ज़िंदा आदमी
एक चलता-फिरता
वाद्य यंत्र है,
वह जहां भी हो
जैसा भी हो
उसकी गंध तक गुनगुनाती है
परछाईं तक झनझनाती है
गरमाहट तक आलापती है
और जब कुछ आदमी
भीड़ बना रहे हों,
उसकी संगीतात्मकता
कई गुना बढ़ जाती है
भूत-भय से परित्यक्त
अधनंगे घर के अंतर्गत
बैठ या लेट कर
सुदूर हाट में रेंगती
भीड़ की भनभनाहट
सुनकर हृदयंगम करना
बहुत सार्थक लगता है
और ऐसे में
निरर्थक लगता है
भौंरे का गुनगुनाना
क्योंकि कलियों संग
उसकी रति-रतता के दौरान
झंकृत होते झांझ के
पंक-मग्न होने की तरह
उसकी कामोत्तेजक गुनगुनाहट का
एकबैक गायब हो जाना
परिभाषित करता है
उसके गुनगुन की क्षणभंगुरता
और उसकी
स्वांत:सुखाय कामुक उन्मत्तता
जबकि भीड़ की सरस धुन
होती है अछूती--
भूत, भविष्य और वर्तमान से
साहित्य, इतिहास और पुराण से
लिहाजा, जब आदम भीड़
मंदिर में आरती गा रही हो
मस्जिद में अजान अलाप रही हो
हाट में चाट या जलेबी खा रही हो
घाटों पर नहा-धोकर
धूप सेंक रही हो
सत्संग में ऊंघ रही हो
या स्टेशनों पर थक-छककर
जम्हाइयाँ-अंगड़ाइयां ले रही हो,
ऐसे में वह छोड़ जाती है--
संगीत का अविरल रेला
जैसेकि जेट जहाज
अपने पीछे बनाता जाता है--
पूंछ्नुमा लकीरें
आसमान के पन्ने पर
भीड़-रचित संगीत में
घुली-मिली होती है--
ह्रदय-विदारक गर्जना
खामोशी की,
घुप्प सनसनाहट
यांत्रिक-अयांत्रिक शोरों की,
और सरगम के पार का स्वर भी
फूटता है भीड़ के गले से ही
जैसेकि एक ही समय में
रावण और कंस साथ-साथ
गलबहियां में कर रहे हों
राम और कृष्ण के विरुद्ध
युद्ध-प्रलाप
या कृष्ण, अर्जुन से
गीता रहे हों आलाप
और राम, बेहोश लखन पर
कर रहे हों--
अथक विलाप
खोए बच्चे का आर्त्त क्रंदन
बलात्कृता की असहाय रुदन
दारथियों की 'राम नाम सत्य है' ध्वनि
जेब-कटे आदमी की पकड़ो-पकड़ो गुहार
आतंकियों का विस्फोटक प्रहार
सीनाजोरी करती पुलिस की दहाड़
दुर्घटना-ग्रस्त लाश को घेरे
कठुआए लोगों की गुमसुमाहट
और भय-विस्मय, मिलन-बिछुड़न
आशा-निराशा, सुख-दु:ख से प्लावित
चीत्कारते दिलों की अकुलाहट
यानी, सभी संभावित शोरों की
रासायनिक क्रिया-अनुक्रिया
घर्षण-अपघर्षण से
चूर्ण बना भीड़ का संगीत
प्रतीत होता है--
नितांत निरपेक्ष और
बहुजन सुखाय
भीड़ का संगीत मर्मस्थल तक पैठता है--
मय्यत में जाते जनों के
शोकतप्त दिलों की धक्-धक् से
भिखारियों की छिटकती रिरियाहट से
और हस्त-चालित काठगाड़ियों पर
कोढ़ियों के दरिद्र-गान से--
'तुम एक पैसा दोगे,
वो दस लाख देगा'
और ऐसे में बेहूदा लगता है
साधुओं का आशीर्वचन--
'जुग-जुग जियो, बचवा'
तथा विवाहार्थी लड़कियों के लिए दुआ--
'दूधो नहाओ, पूतों फलो'
मोनोलिसा के
बहुभावामय चहरे की तरह
भीड़ की गुनगुनाहट
भावनाओं के साथ नहीं करती है
कोई पक्षपात,
अर्थात जब हम मुस्कराना चाहें
वह गलाफोड़ हंसी हंसती है
और जब हम क्लेशित हों
वह बिलख-बिलख रोती है.