भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बोध / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज श्रीवास्तव |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> ''' बोध ''') |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
<poem> | <poem> | ||
− | ''' | + | ''' बोध ''' |
+ | |||
+ | महास्वप्न की | ||
+ | वृत्ताकार जीवनमयता में | ||
+ | ठोस वायव अस्तित्त्व का | ||
+ | कटु यथार्थ भोग रहा हूं | ||
+ | |||
+ | कितना सच हैं-- | ||
+ | सतत चढाव से सीमाबद्ध | ||
+ | यह जैविक अवसान | ||
+ | यह पतन | ||
+ | यह बोध | ||
+ | यह उन्माद! | ||
+ | |||
+ | कितना निश्छल है-- | ||
+ | महास्वप्न की | ||
+ | अनुभूति की प्रक्रिया में | ||
+ | इसे साकार करने का त्रिशंकु प्रयास! | ||
+ | |||
+ | कितनी अजीब है-- | ||
+ | कल्पना और यथार्थ के | ||
+ | हिंडोले में | ||
+ | झूलती ऐन्द्रियता | ||
+ | जिसका अतीत-बोध | ||
+ | एक स्वप्निल चित्र है | ||
+ | और वर्त्तमान | ||
+ | एक मायावी षड्यंत्र! |
14:24, 3 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
बोध
महास्वप्न की
वृत्ताकार जीवनमयता में
ठोस वायव अस्तित्त्व का
कटु यथार्थ भोग रहा हूं
कितना सच हैं--
सतत चढाव से सीमाबद्ध
यह जैविक अवसान
यह पतन
यह बोध
यह उन्माद!
कितना निश्छल है--
महास्वप्न की
अनुभूति की प्रक्रिया में
इसे साकार करने का त्रिशंकु प्रयास!
कितनी अजीब है--
कल्पना और यथार्थ के
हिंडोले में
झूलती ऐन्द्रियता
जिसका अतीत-बोध
एक स्वप्निल चित्र है
और वर्त्तमान
एक मायावी षड्यंत्र!