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"धुंधलका / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर
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20:36, 3 अगस्त 2010 का अवतरण
मित्र !
जब धुंध जब इतनी घिर जाये
कि शीशे के पार कुछ दिखाई ना दे
तब -
हथेलियों से शीशे को पोंछ लेना
फिर
शीशे के पार देखना
सब कुछ साफ़ साफ़ दिखने लगेगा
मैं तो वहीँ खड़ा था
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ
सिर्फ धुंध ने तुम्हे
बहका रखा था