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"मुक्ति का आह्वान / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर

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20:38, 3 अगस्त 2010 का अवतरण


बंद कर लिए गए दरवाज़े
बंद कर ली गयीं खिड़कियाँ
खो बैठा ताज़गी
बंदी पवन

उगने लगे जाले
पलने लगे मकड़े
बुनते चले गए विषैले तार
उलझने लगे पावँ
चूसने लगे रक्त
फूलने लगे मकड़े

खोलने लगे दरवाजे
खोलने लगे खिड़कियाँ
ना खुले तो
इन्हें तोड़ना होगा

बंदी पवन की मुक्ति
आवश्यक होती है
अन्यथा घुट जायेग दम
पीढ़ियों का