भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुक्ति का आह्वान / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=अशोक लव |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान }} <poem> ब…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=अशोक लव | |रचनाकार=अशोक लव | ||
− | |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान | + | |संग्रह =लड़कियाँ छूना चाहती हैं आसमान / अशोक लव |
− | }} | + | }} |
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | |||
बंद कर लिए गए दरवाज़े | बंद कर लिए गए दरवाज़े | ||
बंद कर ली गयीं खिड़कियाँ | बंद कर ली गयीं खिड़कियाँ | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
पलने लगे मकड़े | पलने लगे मकड़े | ||
बुनते चले गए विषैले तार | बुनते चले गए विषैले तार | ||
− | उलझने लगे | + | उलझने लगे पाँव |
चूसने लगे रक्त | चूसने लगे रक्त | ||
फूलने लगे मकड़े | फूलने लगे मकड़े | ||
− | खोलने लगे | + | खोलने लगे दरवाज़े |
खोलने लगे खिड़कियाँ | खोलने लगे खिड़कियाँ | ||
ना खुले तो | ना खुले तो |
13:02, 4 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
बंद कर लिए गए दरवाज़े
बंद कर ली गयीं खिड़कियाँ
खो बैठा ताज़गी
बंदी पवन
उगने लगे जाले
पलने लगे मकड़े
बुनते चले गए विषैले तार
उलझने लगे पाँव
चूसने लगे रक्त
फूलने लगे मकड़े
खोलने लगे दरवाज़े
खोलने लगे खिड़कियाँ
ना खुले तो
इन्हें तोड़ना होगा
बंदी पवन की मुक्ति
आवश्यक होती है
अन्यथा घुट जायेग दम
पीढ़ियों का