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"धुंधलका / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर
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मित्र ! | मित्र ! | ||
जब धुंध इतनी घिर जाए | जब धुंध इतनी घिर जाए |
13:02, 4 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
मित्र !
जब धुंध इतनी घिर जाए
कि शीशे के पार कुछ दिखाई ना दे
तब -
हथेलियों से शीशे को पोंछ लेना
फिर
शीशे के पार देखना
सब कुछ साफ़-साफ़ दिखने लगेगा
मैं तो वहीं खड़ा था
जहाँ अब दिखाई देने लगा हूँ
सिर्फ धुंध ने तुम्हे
बहका रखा था