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"कोई नहीं है आसपास / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर
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20:37, 5 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
कोई नहीं है आसपास
फिर भी हवाओं में है
किसी की सुगंध
महका रही है भीतर तक
कर रही है उल्लसित।
वृक्षों के पत्तों में प्रकम्पित
चूड़ियों की खनखनाहट
आकाश में टंगा सूर्य
माथे की बिंदी - सा
चमक रहा है।
जनवरी की कोसी-कोसी धूप
किसी की निकटता -सी
लग रही है सुखद ।
दूरियों की दीवार के पार
है कोई
और यहाँ हैं -
नदी से नहाकर निकली
हवाओं का गीलापन लिए
निकटता के क्षणों के अहसास।
किसी के संग न होने पर भी
आ रही है
हवा के प्रत्येक झोंके के साथ
सुपरिचित महक |