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"माहिये-२ / रविकांत अनमोल" के अवतरणों में अंतर

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ये वक़्त है जाने का ।
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दस्तूर ज़माने का ।
 
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11:43, 6 अगस्त 2010 के समय का अवतरण


जब फूल महकते हैं ।
हूक सी उठती है,
कुछ दर्द सुलगते हैं ।

देखा है बहारों में ।
फूल नहाते हैं,
किरनों की फुहारों में ।

जन्नत में क्या होगा ।
नूर की बगिया में,
इक फूल खिला होगा ।

फरियाद किया करना ।
फुर्सत में हमको भी,
तुम याद किया करना ।
१०
ये वक़्त है जाने का ।
मिल के बिछुड़ना ही,
दस्तूर ज़माने का ।