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"बिजली इक कौंद गयी आँखों के आगे तो क्या / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर

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16:00, 6 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

बिजली इक कौंद गयी आँखों के आगे तो क्या,
बात करते कि मैं लब तश्नए-तक़रीर भी था ।
पकड़े जाते हैं फरिश्तों के लिखे पर नाहक़,
आदमी कोई हमारा, दमे-तहरीर भी था ?