"साँसों की अँगुली थामे जो / हरीश भादानी" के अवतरणों में अंतर
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आए क्वांरी साध तो | आए क्वांरी साध तो | ||
गीतों से माँग संवार दूँ | गीतों से माँग संवार दूँ | ||
मैं रागों से सिंगार दूँ | मैं रागों से सिंगार दूँ | ||
संकेतों की मनुहार दूँ | संकेतों की मनुहार दूँ | ||
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गीतों के आखर को सुर्खी | गीतों के आखर को सुर्खी | ||
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सौ आँसू उस पर वार दूँ | सौ आँसू उस पर वार दूँ | ||
आशाओं के उपहार दूँ | आशाओं के उपहार दूँ | ||
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मेरे गीतों को ढलुआनें | मेरे गीतों को ढलुआनें | ||
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मैं दो का भेद बिसार दूँ | मैं दो का भेद बिसार दूँ | ||
परछाई सा आकार दूँ | परछाई सा आकार दूँ | ||
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मेरे गीतों को गदराया | मेरे गीतों को गदराया | ||
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मैं धुँधले पंथ निखार दूँ | मैं धुँधले पंथ निखार दूँ | ||
मैं सारा सफर गुजार दूँ | मैं सारा सफर गुजार दूँ | ||
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मेरे गीतों में सागर की | मेरे गीतों में सागर की | ||
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संकेतों की मनुहार दूँ | संकेतों की मनुहार दूँ | ||
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01:27, 7 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
साँसों की अँगुली थामे जो
आए क्वांरी साध तो
गीतों से माँग संवार दूँ
मैं रागों से सिंगार दूँ
संकेतों की मनुहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो....
गीतों के आखर को सुर्खी
दी है तीखी धूप ने
रागों के स्वर को आकुलता
दी लहरों के रूप ने
तट सा मौनी सपना कोई
चाहे मेरा साथ तो
पीड़ा-सा उसे उभार दूँ
सौ आँसू उस पर वार दूँ
आशाओं के उपहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो....
मेरे गीतों को ढलुआनें
दी झुकते आकाश ने
रागों को बढ़ना सिखलाया
वनपाखी की प्यास ने
शूलों से बतियाते कोई
आए मुझ तक पाँव तो
मैं बाँहों को विस्तार दूँ
मैं दो का भेद बिसार दूँ
परछाई सा आकार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो....
मेरे गीतों को गदराया
सावन की सौगात ने
रागों को गूँजें दे दी हैं
मेघों की बारात ने
रिमझिम बरखा जैसी कोई
बरसे मुझ पर याद तो
मैं मन की जलन उतार दूँ
मैं धुँधले पंथ निखार दूँ
मैं सारा सफर गुजार दूँ
सांसों की अँगुली थामे जो....
मेरे गीतों में सागर की
अनदेखी गहराई है
मेरी रागों के सरगम में
मौजों की तरुणाई है
सूनेपन से सिहरी-सिहरी
बहके कोई नाव तो
मैं मलयाई पतवार दूँ
मैं हर क्षण फेनिल प्यार दूँ
मैं कोई तीर उतार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो
आए क्वांरी साध तो
गीतों से माँग संवार दूँ
मैं रागों से सिंगार दूँ
संकेतों की मनुहार दूँ
साँसों की अँगुली थामे जो