"खूब नचाती है राजनीति / अशोक लव" के अवतरणों में अंतर
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जानते हैं | जानते हैं | ||
− | + | वेश्याओं के साथ सोने से हो सकते हैं | |
जानलेवा रोग | जानलेवा रोग | ||
फिर भी स्खलित होने के आनंद में सोते हैं | फिर भी स्खलित होने के आनंद में सोते हैं | ||
− | सैंकड़ों- | + | सैंकड़ों-हज़ारों के संग सो चुकी वेश्या के साथ |
कामी पुरुष | कामी पुरुष | ||
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न अपमान की चिंता | न अपमान की चिंता | ||
न दैहिक रोग से ग्रसित हो | न दैहिक रोग से ग्रसित हो | ||
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कुछ नहीं सूझता पुरुष को | कुछ नहीं सूझता पुरुष को | ||
− | राजनीति भी | + | राजनीति भी ख़ूब नशीली होती है |
राजनीति के नशे में दीखता है | राजनीति के नशे में दीखता है | ||
सत्तानंद | सत्तानंद | ||
एक बार सत्ता का सुख लग जाता है | एक बार सत्ता का सुख लग जाता है | ||
− | तो | + | तो मृत्युपर्यंत लगा रहता है |
− | + | वेश्यागमन के सामान | |
− | + | राजनीति ख़ूब नचाती है | |
कुर्सी दिखा-दिखाकर कराती है | कुर्सी दिखा-दिखाकर कराती है | ||
घोरतम अपराध | घोरतम अपराध | ||
− | + | हत्याएँ, बलात्कार, भ्रष्टाचार, असत्य संभाषण, | |
पहनवाती हैं पाखंडी चोला | पहनवाती हैं पाखंडी चोला | ||
− | जन-जन को बरगलाने के मंत्र | + | जन-जन को बरगलाने के मंत्र फूँकती है |
अमर्यादित आचरण को मर्यादित सिद्ध करना चाहती है | अमर्यादित आचरण को मर्यादित सिद्ध करना चाहती है | ||
− | कामी पुरुष जाता है | + | कामी पुरुष जाता है वेश्याओं के पास |
देह सुख और आनंद के लिए | देह सुख और आनंद के लिए | ||
और देहिक रोगों से ग्रसित हो सड़-सड़कर मर जाता है | और देहिक रोगों से ग्रसित हो सड़-सड़कर मर जाता है | ||
− | + | राजनीति भी कराती है समस्त अमर्यादित आचरण | |
सत्ता कि गलियारों में खूब घुमाती है,दीवाना बनाती है | सत्ता कि गलियारों में खूब घुमाती है,दीवाना बनाती है | ||
हँसते-हँसते भोगते हैं कारावास सत्ता के लोभी | हँसते-हँसते भोगते हैं कारावास सत्ता के लोभी | ||
और प्रसन्न होते हैं | और प्रसन्न होते हैं | ||
दिखने, न दिखने वाले रोगों से ग्रस्त करके | दिखने, न दिखने वाले रोगों से ग्रस्त करके | ||
− | सत्ता-सुख लोभियों को को चूस डालती है | + | सत्ता-सुख लोभियों को को चूस डालती है राजनीति |
और मार देती है | और मार देती है | ||
− | + | वेश्यागामियों के नाम कोई स्मरण नहीं रखता | |
− | + | परिवार में भी कोई नाम नहीं लेना चाहता उनका | |
− | + | राजनीति भी जिन्हें नचाती है | |
उन्हें भी कोई याद नहीं रखता | उन्हें भी कोई याद नहीं रखता | ||
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23:26, 9 अगस्त 2010 के समय का अवतरण
नशा है राजनीति
वेश्या के साथ सोने जैसा
एक के बाद दूसरी
दूसरी के बाद तीसरी
तीसरी के बाद चौथी
न ख़त्म होने का सिलसिला
जानते हैं
वेश्याओं के साथ सोने से हो सकते हैं
जानलेवा रोग
फिर भी स्खलित होने के आनंद में सोते हैं
सैंकड़ों-हज़ारों के संग सो चुकी वेश्या के साथ
कामी पुरुष
न काम की चिंता
न अपमान की चिंता
न दैहिक रोग से ग्रसित हो
तिल-तिल सड़ने की चिंता
बस दिखती है लिजलिजी देह
देहानंद के नशे में
कुछ नहीं सूझता पुरुष को
राजनीति भी ख़ूब नशीली होती है
राजनीति के नशे में दीखता है
सत्तानंद
एक बार सत्ता का सुख लग जाता है
तो मृत्युपर्यंत लगा रहता है
वेश्यागमन के सामान
राजनीति ख़ूब नचाती है
कुर्सी दिखा-दिखाकर कराती है
घोरतम अपराध
हत्याएँ, बलात्कार, भ्रष्टाचार, असत्य संभाषण,
पहनवाती हैं पाखंडी चोला
जन-जन को बरगलाने के मंत्र फूँकती है
अमर्यादित आचरण को मर्यादित सिद्ध करना चाहती है
कामी पुरुष जाता है वेश्याओं के पास
देह सुख और आनंद के लिए
और देहिक रोगों से ग्रसित हो सड़-सड़कर मर जाता है
राजनीति भी कराती है समस्त अमर्यादित आचरण
सत्ता कि गलियारों में खूब घुमाती है,दीवाना बनाती है
हँसते-हँसते भोगते हैं कारावास सत्ता के लोभी
और प्रसन्न होते हैं
दिखने, न दिखने वाले रोगों से ग्रस्त करके
सत्ता-सुख लोभियों को को चूस डालती है राजनीति
और मार देती है
वेश्यागामियों के नाम कोई स्मरण नहीं रखता
परिवार में भी कोई नाम नहीं लेना चाहता उनका
राजनीति भी जिन्हें नचाती है
उन्हें भी कोई याद नहीं रखता