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"एक किरन भोर की / बुद्धिनाथ मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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लाया हूँ माँग इसे<br>
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खुश हैं लहरें उछालकर।<br>
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सोना बरसेगा<br>
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जब धूप बन खिलेगा मन,<br>
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गेंदे की हरी डाल पर।
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06:05, 11 अगस्त 2010 के समय का अवतरण

एक किरन भोर की
उतराई आँगने ।
रखना इसको सँभाल कर,
लाया हूँ माँग इसे
सूरज के गाँव से
अँधियारे का ख़याल कर ।

अँगीठी ताप-ताप
रात की मनौती की,
दिन पूजे धूप सेंक-सेंक ।
लिपटा कर बचपन को
खाँसते बुढ़ापे में,
रख ली है पुरखों की टेक ।
जलपाखी आस का
बहुराया ताल में
खुश हैं लहरें उछालकर ।

सोना बरसेगा
जब धूप बन खिलेगा मन,
गेंदे की हरी डाल पर ।