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<br>चौ०-लखन सकोप बचन जे बोले। डगमगानि महि दिग्गज डोले॥
<br>सकल लोक सब भूप डेराने। सिय हियँ हरषु जनकु सकुचाने॥१॥
<br>गुर रघुपति सब मुनि मन माहीं। मुदित भए पुनि पुनि पुलकाहीं॥
<br>सयनहिं रघुपति लखनु नेवारे। प्रेम समेत निकट बैठारे॥२॥
<br>जूथ जूथ मिलि सुमुख सुनयनीं। करहिं गान कल कोकिलबयनी॥१॥
<br>सुखु बिदेह कर बरनि न जाई। जन्मदरिद्र मनहुँ निधि पाई॥
<br>गत बिगत त्रास भइ सीय सुखारी। जनु बिधु उदयँ चकोरकुमारी॥२॥
<br>जनक कीन्ह कौसिकहि प्रनामा। प्रभु प्रसाद धनु भंजेउ रामा॥
<br>मोहि कृतकृत्य कीन्ह दुहुँ भाईं। अब जो उचित सो कहिअ गोसाई॥३॥
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