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"खटमल-मच्छर-युद्ध / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: 'काका' वेटिंग रूम में फँसे देहरादून । नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें…)
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17:46, 15 अगस्त 2010 का अवतरण

'काका' वेटिंग रूम में फँसे देहरादून । नींद न आई रात भर, मच्छर चूसें खून ॥ मच्छर चूसें खून, देह घायल कर डाली । हमें उड़ा ले ज़ाने की योजना बना ली ॥ किंतु बच गए कैसे, यह बतलाएँ तुमको । नीचे खटमल जी ने पकड़ रखा था हमको ॥

हुई विकट रस्साकशी, थके नहीं रणधीर । ऊपर मच्छर खींचते नीचे खटमल वीर ॥ नीचे खटमल वीर, जान संकट में आई । घिघियाए हम- "जै जै जै हनुमान गुसाईं ॥ पंजाबी सरदार एक बोला चिल्लाके - | त्व्हाणूँ पजन करना होवे तो करो बाहर जाके ॥