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"नाम-रूप का भेद / नाम बड़े और दर्शन छोटे / काका हाथरसी" के अवतरणों में अंतर

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18:57, 15 अगस्त 2010 का अवतरण

नाम - रूप के भेद पर कभी किया है ग़ौर ? नाम मिला कुछ और तो शक्ल - अक्ल कुछ और॥

शक्ल - अक्ल कुछ और नयनसुख देखे काने । बाबू सुंदरलाल बनाये ऐंचकताने ॥

कहँ ‘ काका ' कवि , दयाराम जी मारें मच्छर । विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर ॥


मुंशी चंदालाल का तारकोल सा रूप । श्यामलाल का रंग है जैसे खिलती धूप ॥

जैसे खिलती धूप , सजे बुश्शर्ट पैंट में - ज्ञानचंद छै बार फ़ेल हो गये टैंथ में ॥

कहँ ‘ काका ' ज्वालाप्रसाद जी बिल्कुल ठंडे । पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे ॥


देख अशर्फ़ीलाल के घर में टूटी खाट । सेठ भिखारीदास के मील चल रहे आठ ॥

मील चल रहे आठ , करम के मिटें न लेखे । धनीराम जी हमने प्रायः निर्धन देखे ॥

कहँ ‘ काका ' कवि , दूल्हेराम मर गये कुँवारे । बिना प्रियतमा तड़पें प्रीतमसिंह बेचारे ॥


पेट न अपना भर सके जीवन भर जगपाल । बिना सूँ ड़ के सैकड़ों मिलें गणेशीलाल ॥

मिलें गणेशीलाल , पैंट की क्रीज़ सम्हारी । बैग कुली को दिया , चले मिस्टर गिरधारी ॥

कहँ ‘ काका ' कविराय , करें लाखों का सट्टा । नाम हवेलीराम किराये का है अट्टा ॥


चतुरसेन बुद्धू मिले , बुद्धसेन निर्बुद्ध । श्री आनंदीलाल जी रहें सर्वदा क्रुद्ध ॥

रहें सर्वदा क्रुद्ध , मास्टर चक्कर खाते । इंसानों को मुंशी तोताराम पढ़ाते ॥

कहँ ‘ काका ', बलवीर सिंह जी लटे हुये हैं । थानसिंह के सारे कपड़े फटे हुये हैं ॥


बेच रहे हैं कोयला , लाला हीरालाल । सूखे गंगाराम जी , रूखे मक्खनलाल ॥

रूखे मक्खनलाल , झींकते दादा - दादी । निकले बेटा आशाराम निराशावादी ॥

कहँ ‘काका' कवि, भीमसेन पिद्दी से दिखते । कविवर ‘दिनकर’ छायावदी कविता लिखते ॥


तेजपाल जी भोथरे , मरियल से मलखान । लाला दानसहाय ने करी न कौड़ी दान ॥

करी न कौड़ी दान , बात अचरज की भाई । वंशीधर ने जीवन - भर वंशी न बजाई ॥

कहँ ‘ काका ' कवि , फूलचंद जी इतने भारी । दर्शन करते ही टूट जाये कुर्सी बेचारी ॥


खट्टे - खारी - खुरखुरे मृदुलाजी के बैन । मृगनयनी के देखिये चिलगोजा से नैन ॥

चिलगोजा से नैन, शांता करतीं दंगा । नल पर न्हाती देखीं हमने यमुना, गंगा ॥

कहँ ‘ काका ' कवि, लज्जावती दहाड़ रही हैं । दर्शन देवी लंबा घूँघट काढ़ रही हैं ॥


अज्ञानी निकले निरे पंडित ज्ञानीराम । कौशल्या के पुत्र का रक्खा दशरथ नाम ॥

रक्खा दशरथ नाम , मेल क्या खूब मिलाया । दूल्हा संतराम को आई दुल्हन माया ॥

‘काका' कोई - कोई रिश्ता बड़ा निकम्मा । पार्वती देवी हैं शिवशंकर की अम्मा ॥


दूर युद्ध से भागते नाम रखा रणधीर । भागचन्द की आज तक सोई है तकदीर ॥

सोई है तकदीर, बहुत से देखे भाले । निकले प्रिय सुखदेव सभी दु:ख देने वाले ॥

कह काका कविराय आँकड़े बिलकुल सच्चे । बालकराम ब्रह्मचारी के बारह बच्चे ॥


आकुल व्याकुल दीखते शर्मा परमानन्द । कार्य अधूरे छोड़कर भागे पूरनचँद ॥

भागे पूरनचँद, अमर जी मरते देखे । मिश्रीबाबू कड़वी बातें करते देखे ॥

कह काका भण्डारासिंह जी रीते-थोथे । बीत गया जीवन विनोद का रोते-धोते ॥


शीला जीजी लड़ रही, सरला करती शोर । कुसुम, कमल, पुष्पा, सुमन, निकली बड़ी कठोर ॥

निकली बड़ी कठोर, निर्मला मन की मैली । सुधा सहेली अमृताबाई सुनी विषैली ॥

कह काका कवि बाबूजी क्या देखा तुमने ? बल्ली जैसी मिस लल्ली देखीं हैं हमने ॥


कलयुग में कैसे निभे पति पत्नी क साथ । चपलादेवी को मिले बाबू भोलेनाथ ॥

बाबू भोलेनाथ कहाँ तक कहें कहानी । पंडित रामचंद्र की पत्नी राधारानी ॥

काका लक्ष्मीनारायन की गृहणी रीता । कृष्णचंद्र की वाइफ बन कर आई सीता ॥


पूँछ न आधी इंच भी कहलाते हनुमान । मिले न अर्जुनलाल के घर में तीर कमान ॥

घर में तीर कमान, बदी करता है नेका । तीर्थराज ने कभी न इलाहबाद देखा ॥

सत्यपाल काका की रक़म डकार चुके हैं । विजयसिंह दस बार इलेक्शन हार चुके हैं ॥


सुखीरामजी अति दु:खी दु:खीराम अलमस्त । हिकमतराय हकीमजी रहे सदा अस्वस्थ ॥

रहे सदा अस्वस्थ, प्रभु की देखो माया । प्रेमचन्द में रत्तीभर भी प्रेम न पाया ॥

कह काका जब वृत-उपवासों के दिन आते । त्यागी साहब अन्न त्याग कर रिश्वत खाते ॥


रामराज के घाट पर आता जब भूचाल । लुढ़क जाएँ श्रीतख्तमल बैठे घूरेलाल ॥

बैठे घूरेलाल रंग किस्मत दिखलाती । इत्रसिंह के कपड़ों में से बदबू आती ॥

कह काका गम्भीरसिंह मुँह फाड़ रहे हैं । महाराज लाला की गद्दी झाड़ रहे हैं ॥


दूधनाथ जी पी रहे सपरेटा की चाय । गुरु गोपालप्रसाद के घर में मिली न गाय ॥

घर में मिली न गाय, समझ लो असली कारण । माखन छोड़ डालडा खाते बृजनारायण ॥

काका प्यारेलाल सदा गुर्राते देखे । हरिश्चन्द्र जी झूठे केस लड़ाते देखे ॥


रूपराम के रूप की निन्दा करते मित्र । चकित रह गए देख कर कामराज का चित्र ॥

कामराज का चित्र थक गए करके विनती । यादराम को याद न होती सौ तक गिनती ॥

कह काका कविराय बड़े निकले बेदर्दी । भरतराम ने चरतराम पर नालिश कर दी ॥


नाम धाम से काम का क्या है सामञ्जस्य ? किसी पार्टी के नहीं झंडाराम सदस्य ॥

झंडाराम सदस्य, भाग्य की मिले न रेखा । स्वर्णसिंह के हाथ कड़ा लोहे का देखा ॥

कह काका कंठस्थ करो ये बड़े काम की । माला पूरी हुई एक सौ आठ नाम की ॥